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________________ * अभिनवमिच्छानुलोमलक्षणम् * नत्वशङ्कानिरासेनोपायेच्छोत्पादनेनेच्छानुलोमत्वनिर्वाहात् । 'विध्यादिभिन्नप्रवृत्त्यप्रतिबन्धकवचनत्वमेवेच्छानुलोमत्वम्' इत्यपि कश्चित् । । ७६ ।। उक्ता इच्छानुलोम ७।। अथाऽनभिगृहीतामाह । निषेधादेः, तथात्वात्। अयं भावः दीक्षारूपोपेयं प्रति पित्राद्यनुमतेरुपायत्वेन दीक्षासाधनीभूतपित्राद्यनुमतौ प्रवृत्त्यथ त कालविलम्बरूपानिष्टसाधनत्वशङ्काविघटनमावश्यकम्, अन्यथा तदिच्छाया असम्भवात् । निषेधाभावव्यञ्जकगुर्वनुज्ञालाभेन 'पित्राद्यनुमतिः न मदनिष्टसाधनम्, गुर्वनुज्ञातत्वादि 'त्यनुमानात् पित्राद्यनुमताववनिष्टसाधनत्वशङ्का प्रलीयते । ततो द्रुतं दीक्षौपयिकेच्छा जायते । दीक्षेच्छानुलोमत्वाभावेऽपि दीक्षौपयिकेविषयकेच्छासहकारिकारणत्वेनेच्छानुलोमत्वं सुघटघटाकोटिसण्टङ्कमाटीकते । अन्यमतमाह विध्यादिभिन्नप्रवृत्त्यप्रतिबन्धकवचनत्वमेवेति । प्रवृत्त्यप्रतिबन्धकवचनत्वमित्येवोक्तौ विध्यादावतिव्याप्तिः प्रज्ञापन्यादेरपि प्रवृत्तिप्रतिबन्धकत्वाभावात् । अतो विध्यादिभिन्नेति । आदिपदेनाज्ञादेर्ग्रहण् । विध्यादिभिन्नवचनत्वमित्येवोक्तौ आमन्त्रण्यादावतिप्रसङ्गः । अतः प्रवृत्त्यप्रतिबन्धकेति वचनविशेषणम् । ज्ञानेच्छादावतिव्याप्तिवारणाथ वचनत्वमित्युक्तम्। एवकारेण निजेप्सितत्वकथनत्वादेर्व्यवच्छेदः कृतः । ततो विध्यादिभिन्नत्वे सति प्रवृत्त्यप्रतिबन्धकअनुकूल यह भाषा नहीं है। जब श्रोता में इच्छा की उत्पत्ति का सहकारि कारण वह वचन नहीं है तब उसे इच्छानुलोम भाषा कहना कैसे उचित होगा? अतः ज्ञानी गुरु भगवंत की वाणी इच्छानुलोम नहीं बनेगी । * उपेयेच्छा की तरह उपाय इच्छा का सहकारी कारण वचन इच्छानुलोम - समाधान :- मैवम् इति। आपकी यह शंका आपको जरूर मधुर लगेगी, क्योंकि कहा गया है कि पूत अपना सब को प्यारा । मगर विचार करने पर यह निराधार हो जाती है। इसका कारण यह है कि उपेय यानी कार्य की इच्छा की उत्पत्ति में अनुकूल = सहकारिकारणभूत वचन जैसे इच्छानुलोम भाषा है वैसे उपाय यानी साधन की इच्छा का अनुकूल वचन भी इच्छानुलोम भाषा ही है। प्रस्तुत में दीक्षा उपेय कार्य है और माता-पिता की सम्मति दीक्षा का उपाय= साधन है। दीक्षार्थी को दीक्षारूप उपेय की इच्छा तो उत्पन्न हो चूकी है। इसलिए यह गुरु भगवंत की वाणी उपेय इच्छा के अनुकूल नहीं है ऐसा आप कह सकते हो फिर भी 'वह मातापिता की सम्मति रूप उपाय की इच्छा के अनुकूल नहीं है' ऐसा आप नहीं कह सकते, क्योंकि 'यथासुखं देवानुप्रिय ! विलंब मत करो' ऐसी ज्ञानी गुरुदेव की वाणी को सुन कर दीक्षार्थी को यह निश्चय होता है कि माता-पिता की अनुमति गुरु भगवंत से अनुज्ञात है। अतः मेरे अनिष्ट का साधन नहीं है। ऐसा निश्चय होने से दीक्षा के लिए माता-पिता की अनुमति में दीक्षार्थी को जो पूर्व में शंका थी कि में दीक्षा की अनुमति माँगूगा तब हो सकता है कदाचित् दीक्षा में वे कालक्षेप करे, जो दीक्षा में अनिष्टकारक होगा' - वह दूर हो जाती है, क्योंकि 'ज्ञानी गुरु भगवंत से अनुमति की प्रवृत्ति अनुज्ञात है' ऐसा निश्चय, जो माता-पिता की अनुमति में कालक्षेपरूप अनिष्टसाधनत्व की शंका का विरोधी = नाशक है, उसे हो चूका है। दीक्षा के लिए माता-पिता की अनुमति में अनिष्टसाधनता की शंका दूर होने से और इष्टसाधनता का निश्चय होने से दीक्षार्थी को अनुमति माँगने की इच्छा का प्रादुर्भाव होता है, जो अनुमति की प्रवृत्ति का कारण है। इस तरह माता-पिता की अनुमतिरूप दीक्षाउपाय की इच्छा को उत्पन्न करने से इस भाषा में इच्छानुलोमत्व का निर्वाह निःशंक हो सकता है। २६३ = - * इच्छानुलोम भाषा में अन्य विद्वानों का अभिप्राय * विध्यादि. इति । अब विवरणकार महामहोध्याय यशोविजयजी महाराज इच्छानुलोम भाषा के विषय में अन्य विद्वान् मनीषियों का मत बताते हैं । उन विद्वान् मनीषियों का यह कहना है कि जो भाषा विध्यादि से भिन्न हो और प्रवृत्ति की प्रतिबन्धक न हो वही इच्छानुलोम भाषा है। इच्छानुलोम भाषा के इस लक्षण का आशय यह है कि इच्छानुलोम भाषा प्रवृत्ति की प्रतिबन्धक नहीं होती है। अतः प्रवृत्तिअप्रतिबन्धकवचनत्व ऐसा इच्छानुलोम भाषा का लक्षण हो सकता है। मगर इसमें दोष यह है कि प्रज्ञापनी आदि भाषा भी प्रवृत्ति की निमित्त होने से प्रवृत्ति की प्रतिबन्धक नहीं है। अतः विधिवाक्यघटित प्रज्ञापनी आदि भाषा में भी इच्छानुलोम भाषा के लक्षण की प्रवृत्ति होने लगेगी । अतः विध्यादिभिन्नत्वरूप विशेषण लगाना आवश्यक है। तब इच्छानुलोम भाषा का लक्षण 'विध्यादिभिन्नत्वे सति प्रवृत्त्यप्रतिबन्धकवचनत्व' होगा। अब प्रज्ञापनी आदि भाषा में इच्छानुलोम भाषा के लक्षण की प्रवृत्ति होने का संभव नहीं है, क्योंकि प्रज्ञापनी आदि में लक्षण के विशेष्यांश की विद्यमानता होने पर भी विशेषण अंश की विद्यमानता नहीं -
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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