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________________ नल दमयन्ती की कथा सम्यक्त्व प्रकरणम् के कोटि-कटाक्षों को देखती हुई, समुद्र की लहरों की तरह दिशापतियों के मन को उद्विग्न बनाती हुई, पिता की आज्ञा का अखण्डपालन करती हुई, मण्डप की शोभा को बढ़ाती हुई एवं भूपालों के मनों को उत्कण्ठित करती हुई दमयन्ती वहाँ आयी। उसे देखकर वे सारे राजा मानों कार्मण उपमावाले बहुत से कामविकारों को वश में करने के लिए बाधित हुए। पिता के आदेश पर अन्तःपुर की प्रतीहारी ने एक-एक राजा के स्वरूप का परिकीर्तन आरंभ किया। हे पुत्री ! यह काशी नरेश हैं। इनके बल से स्फूरित भुजाबलों का यश त्रिपथगा गंगा के बहने से उसके तटों पर किनारेकिनारे बहता है। अतः यदि गंगा के समीप जाने का लक्ष्य रखती हुई गंगा से खेलना चाहती हो, तो साक्षात् गंगा के समान देवता का वरण करो । दमयन्ती ने कहा-हे भद्रे ! सुना जाता है कि काशी में रहनेवाले दूसरों को ठगने में चतुर होते हैं, वे मुझे इष्ट नहीं है। तब प्रतिहारी ने आगे बढ़कर कहा-ये कोङ्कण नरेश है। सिंह के समान इन्होंने अनेक पापियों का अंग-भंग किया है। इनका वरण करके नन्दन वन के समान कदलीवन में ताप से तप्त ग्रीष्म में सुख का स्थान प्राप्त करो । दमयन्ती ने कहा-कोङ्कण के लोग प्रायः निष्कारण ही क्रोध करते हैं। उन्हें अनुकूल करने के लिए पग पग पर उनका क्रोध शान्त करने की शक्ति मुझमें नहीं है। तब कुछ आगे जाकर प्रतीहारी ने कहा- देवी! वाणी के स्वामी हैं। कश्मीर की क्यारियों में खिलनेवाली केशर के रूप के समान इन्द्र हैं, इनका वरण करो । राजपुत्री ने कहा- भद्रे ! क्या मैं नहीं जानती कि कश्मीर तुषार का ढेर है । अतः आगे चलो। आगे जाकर प्रतिहारी ने कहा- ये कौशाम्बी के स्वामी हैं। अपने अङ्ग से उन्होंने अनंग (कामदेव ) को जीत लिया है। क्या ये तुम्हारे मन का हरण नहीं करते ? दमयन्ती ने कहा-यह वरमाला अद्भुत हो गयी है । उसे सुनकर अबुधा भद्रा बोली- इसका खण्डन करना तो अत्योक्ति ही है। फिर पुनः कुछ आगे जाकर बोली- हे गुणरागिणी! दानवीर, धर्मवीर, युद्धवीर अवन्तीपति को तुम क्यों नहीं पसन्द करती ? दमयन्ती ने कहा-हे भद्रा ! पिता के समान उम्रवाले इन्हें मैं प्रणाम करती हूँ । तब वह भद्रा उनका उल्लंघन करके दूसरे नृप का गुणगान करने लगी। गौड़ के चूड़ामणि राजा स्त्रियों के लिए चिन्तामणी के समान हैं। अतः हे देवी! इनका वरण करके देवी की तरह चिन्तित अर्थ की प्राप्ति का भाजन बनो । राजदुहिता ने कहा- क्या मनुष्य भी इस प्रकार महादेव के समान विकसीत होता है? तब उसका अतिक्रमण करके भद्रा ने कलिंग देश के राजा को दिखाया। जिसकी तलवार राहु पर आक्रमण करके दोनों ओर से शशि को अम्लान बनाती है । देवी! तुम उस पति को प्राप्त करके जयश्री रूपी पत्नी की सौत बन जाओ। देवी ने कहा- चल चल कर थक जाने से मैं बोलने में समर्थ नहीं हूँ। तब उसको भी छोड़कर भद्रा ने कहादेवी! देखिये! यह सुभग प्राप्त ग्राम व ग्रामणियों से युक्त निषध का राजा नल है। जिसको दृष्टि द्वारा देखने पर देव भी निर्निमेष होकर प्रशंसा करते हैं। दमयन्ती भी उसको देखकर विस्मित रह गयी । सौभाग्य विलास की नवनिधि रूप इनका लावण्य अहोभाव युक्त है । नल के ही गुणग्राम का विचार करती हुई, उसके वश होकर उसने नल के गले में वरमाला डाल दी। 41
SR No.022169
Book TitleSamyaktva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata N Surana
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages382
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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