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________________ ॥१७ HOMM 3681 अत एवाह. बुद्धिजुया खड्नु एवं-तत्तं बुज्मंति, णनण सव्वेवि, ता तीइ नेयणाएवो तव्वुढिहनत्ति. ॥ ३७॥ (टीका ) . वुद्धियुता अतिनिपुणोहापोहरूपप्रज्ञासमन्विताः -खसुरवधारणे-ततो बुद्धियुता एव एवमुक्तरूपेण तत्वं सूत्रानुसारेण प्रवृत्तिरासन्नसिद्धिकजीवानां बणमित्येवंरूपं बुध्यंते व्यवच्छेद्यमाह नपुनः सर्वेपि बुद्धिविकासपीतिनावः बहुबुद्धिबोध्यस्थार्थस्य सामान्यबुद्धिन्निः कृतशतप्रयत्नैरपि बोछुमपार्यमाणत्वात्. एथी ज मूलकार कहे जे के, बुद्धिमानो ज एवी रीते तत्त्व जाणे बे, सघळा नहि जाणी शके. माटे बुद्धिनी वृधिना माटे तेना जेद तथा ज्ञात कहीश. ३७ श्री उपदेशपद. टीका. अति निपुण ऊहापोहरूपप्रज्ञावाला ज ए रीते तत्त्वने एटले के सूत्रानुसारे. प्रवृत्तिए आसनसिद्धिक जीवोनुं बक्षण छे ए वातने समजे छे. ( एवकारर्नु ) व्यवच्छेद्य कहे छ. नहिके सर्वे अर्थात् बुद्धिविकल होय ते. केमके बहुबुद्धि । वोध्य अर्थने सामान्य बुद्धिवाला सेंकमो प्रयत्न करे तोपण समजवा समय थइ शकता नथी.
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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