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________________ ॥१७॥ लावण महसुविणलावणा तयगनिसग्गा. ॥ ६ ॥ एगूणवासगस्स न दिट्टीवाओ 5वाससम मंगं, संपुन्नवीसवरिसो-अणुवाई सव्वसुत्तस्स. ॥ ७ इति. श्रमणीस्तु प्रतीत्या कावचारित्वादिपरिहारबक्षणः सूत्रानुसारः-अकालचारित्वलक्षणं चेदं. अहमीपक्खिए मोत्तुं-वायणाकाल मेव उ; सेसकाल मस्तीओ नायव्वा कालचारिओ १ सिघाचार्याः सिद्धानिधानसूरय श्ह सूत्रानुसारतः सूत्रदाने, आह्रियते आदिप्यते प्रतीतिपथेऽवतार्यते दाष्टातिको थों येन तदाहरणं दृष्टांतः . तदेवाह.चंपा धणसुंदरि तामलित्ति वसुणंदसड्ढसंबंधो, सुंदरि णंदे पीती-समए परणनावना, स्वमनावना, अने तेने निर्सग सूत्र शीखामवां ( ६ ) ओगणीश वर्षना दीक्षितने दृष्टिवाद नामर्नु बारमं अंक ग शीखामवं. अने पूरा वीश वर्षनी दीकित होय ते सर्व सूत्रो शीखवानो अधिकारी गणाय . (७) साध्वीओ माटे- एवी परिपाटी छे के अकाळचारिपणानो त्याग करवो अकाळचारिपणुं ते आ छे. आउम पाखी शिवाय वाचनाना वखते ज आव, बीजा वखते आवतां अकाळचारि गणाय जे. (१) हां सूत्रानुसारे सूत्र देवामां सिद्ध नामना सूरि आहरण एटो दृष्टांतरूपे छे. आहरण शब्दनी व्युत्पत्ति आ छे के आकर्षीय अर्थात् प्रतीतिमां ऊताराय दार्टीतिक अर्थ जेनावमे ते आहरण. चंपामां धनशेउनी पुत्री हती. ताम्रलिप्तीमां वसुशेउनो पुत्र नंद हतो. वे शेउ श्रावक हता. तेमणे सगाई करी. श्री उपदेशपद.
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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