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________________ उपदेशतरंगिणी. यदि ग्रावा तोये तरति तरणिर्यादयति, _प्रतीच्यां सप्तर्चिर्यदि नजति शैत्यं कथमपि ॥ यदि मापी स्याउपरि सकलस्यापि जगतः, प्रसूते सत्वानां तदपिन वधः क्वापि सुकृतम्॥२॥ अर्थ-जो पत्थर पाणीमां तरे, सूर्य पश्चिम दिशामां उदय पामे, अग्नि कोश्क यत्ने शीतलताने नजे, तथा आ पृथ्वीतल कदाच' सर्व जगतनी उपर थइ जाय, तोपण प्राणीउनी हिंसा क्यांय पण पुण्य उत्पन्न करे नहीं. ॥ २॥ स कमलवनमग्नेर्वासरं नावदस्ता, दमृतमुरगवक्त्रात्साधुवादं विवादात् ॥ रुगुपगममपथ्याजीवितं कालकूटा, दन्निलषति वधाद्यः प्राणिनां धर्ममिछेत् ॥३॥ अर्थ- जे माणस प्राणीउनी हिंसाथी धर्मने श्वे, ते अनिश्री कमलोना वनने, सूर्यास्तथी दिवसने,सर्पना मुखमांथी - मृतने, विवादथी कीर्तिने, अपथ्य लोजनथी रोगना नाशने, तथा फेरना नदाणथी जीवितने श्छे . ॥ ३॥ . __एवी रीते अनयदानरूप धर्मना आराधनथी घणां जव्य मा सो मोदनगरमां गया जे. जेम श्री शांतिनाथ प्रन्नुए बाज पदीने पोतानुं मांस आपीने पारापतनुं रक्षण कर्यु , एवा ते श्री शांतिनाथ प्रतु तमोने शांति आपो? एवीरीते ते श्री शांतिनाथ प्रनुए मेघरथ राजाना नवमां पारापतने अजयदान आपीने त्रणे लोकमां करुणासागरपणुं मेलव्यु. तेम सुमेरु नामनो हाथी ससलाने अजयदान आपवाथी मगधना राजा श्रेणिकनो मेघकुमार नामनो पुत्र श्रयो बे. तेनी कथा नीचे प्रमाणे जाणवी.
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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