SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेशतरंगिणी. खरेखर अन्यायथीज चाली जाय बे, फक्त लक्ष्मीना कमावानो ने हानीनो क्लेशमात्र तेने तो बाकी रहे बे. ॥ १ ॥ न्यायोपार्जितं वित्तं, दश वर्षाणि तिष्ठति ॥ प्राप्ते षोडशमे वर्षे, समूलं च विनश्यति ॥ २ ॥ अर्थ - अन्यायी उपार्जन करेलुं धन फक्त दश वर्षोसुधिज रहे बे, पण शोलमं वर्ष श्रावते बते ते मूल सहित नाश पामे बे. २ वली लक्ष्मीविनाना पुरुषोनां कुल, शील, लावण्य, रूप, तथा विद्यादिक गुणो पण दूषणपणाने प्राप्त थाय बे. कयुं छे के, साकारोऽपि सविद्यपि, निर्द्धव्यः क्वापि नार्श्यते ॥ व्यक्ताक्षरः सुवृत्तोऽपि, प्रमः कूटो विवर्ज्यते ॥ १ ॥ अर्थ - उत्तमरूपवालो ने विधान एवो पण माणस जो धन रहित होय तो तेने लोको गणकारता नथी; केमके, प्रगट वालो ने गोलाकारवालो पण खोटो पैसो वर्जी देवाय बे ॥ १ ॥ - १० वरं रेणुर्वरं जस्म, नष्टश्रीर्न पुनर्नरः ॥ मुक्त्वेनं दृश्यते पूजा, क्वापि पर्वणि पूर्वयोः ॥ २ ॥ अर्थ - धूल छाने राख सारी बे, पण निर्धनं पुरुष श्रेष्ठ नथी; केमके ते निर्धन पुरुषविना धूल ने राखनी कोइक पर्वमां पूजा थती देखाय बे. ॥ २ ॥ वे निर्धन माणस जो उंचो होय तो ते थंजा सरखो, नीचो होय तो कुबको, जो रूपालो होय तो श्रमवायुवालो, कालो होय तो वनमा रहेता नील सरखो, थोकुं खातो होय तो मंद, घणुं खानारो होय तो काली, उदार होय तो उमाउ, आडंबरवालो होय तो दुराचारी, विनयी होय तो जीखारी, थोरुं बोलनारो होय तो मुंगो ने मूर्ख, वाचाल होय तो बहु बकबकी, क्षमावालो होय तो बीकाने रांकाने शूरो होय -
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy