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________________ वृत्ति एटले सुधी खीलववी के छेवटे कही शकाय के आखी दुनियामां एवो एक पण नानो जीव नथी के जे तेना विशाळ प्रेमनो पात्र न होय. पात्र नी परीक्षा करवी-कोईने कोई पण कार्यने वास्ते योग्य अधिकारी, अथवा पात्र गणीए ते पहेलां तेनी परीक्षा करवी, ए सामान्य नीतिनो नियम छे. परीक्षा करी जगतमां जो मनुष्यो कार्य करता होयतो केटला बधा अनर्थ अटकावी शकाय, केटला कजीया कंकासने दूरथीज देशवटो दई शकाय. जेम सोनानी कष, छेद, ताप वगेरेथी परीक्षा थाय छे, तेम मनुष्यनी पण प्रसंग आवे काम सोपवाथी परीक्षा थाय छे, आपत्ति ए मित्रतानी परीक्षानी कसोटीनो पत्थर छे. जेम उषर (खाराश वाळी) जमीनमां रोपेलुं बीज उगतुं नथी, तेम अपात्रे आपेली विद्या, अधिकार पण फळदायी निवडता नथी. प्रसंगोपात् मुनिमहाराजोने नम्र विनंति छे के तेओए पण दीक्षा आपतां पहेलां ते लेवा आवनार शिष्योनी पात्रापात्रतानो विचार करवो ए कार्य शासनने उद्योत करनारं तेमज ते दीक्षा लेनारने पण लाभकारी थशे. हालमा जोईए छे तो घणे भागे आ सूत्रनो अनादर करी वर्तवामां आवे छे. पण जेम कसोटीथी सोनानी शुद्धता अशुद्धतानी परीक्षा थाय छे, तेम काळरुपी कसोटीनो पत्थर दरेक मनुष्यनी परीक्षा करे छे. पण पाछळथी पस्तावू न पडे ते माटे दरेक सुज्ञ पुरुषे कोई मनुष्य साथे काम पाडतां पात्र अपात्रनो विचार करवो. कुपात्रमा आपेली विद्या वगेरे अनर्थकारी थाय छे. पयःपानं मुजगानां, केवल विषवर्धनम्. दूध जे सर्वत्र हितकारी छे, जे बाळकोने मातानी गरज सारे छे, जे सात्विक खोराकमांनी एक वस्तु छे, ते दूध सर्पनां मुखमां जतां झेर रुपे परिणमे छे. तेमां वांक दूधनो के सर्पनो ? दूधनो वांक गणाय नहि, कारण के उपर जणाव्या प्रमाणे ते सर्वदा हित करे छे, माटे सर्प रुप कुपात्रो सर्वथा निन्दाने पात्र थाय छे. नाकजमायरिजइ, अप्पा पाहिज्ज न वयणिज्जे । नय साहसं चइज्जइ, उभिज्जइ तेण जगहत्थो १२ अथः- अकार्यने न आचर-करवं, आत्माने निंद्य कार्यमां न नांखवो, साहसनो (पुरुषार्थनो) त्याग न करवो. आ रीते जगतमां हाथ उभो उचो राखवो. ॥१२॥
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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