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________________ (१८) पडे छे. अने पोतानी अज्ञानता अथवा दोषनुं जाणपणुं ते दूर करवाने प्रबळ उत्साह रूप छे. घणा मनुष्यो पोताना दोष जाणी शकता नथी, अने ज्यारे ते जणाय नहि, त्यारे तेमनो त्याग पण शी रीते थई शके ? माटे पोताना गुणदोष जाणवा, ए दरेक आत्महितार्थी पुरूषनुं प्रथम अने आवश्यक कर्तव्य छे. मनुष्य पोते कइ स्थितीमा छे, अथवा उन्नतिक्रमना कया पगथीयापर उभो छे, ते ज्यारे जाणे छे, त्यारे आगळ पगलु कयुं लेवू, ते सवाल बरोबर समजे छे, अने बीजा पामर मनुष्योनी माफक अंधारामां फांफां मारवाने बदले सिद्धे मार्गे योग्य साधनो द्वारा जइ शके छे. आ उपरथी सहज जणायुं हशे के आत्मनिरीक्षण घणुं जरूरनुं छे, अने तेने सारू गुणीजनपर राग राखी तेमना गुणो मेळववा अहर्निश धीमे धीमे मथ्या करवू. जे स्थिति महात्माओ, तीर्थकरो मेळवी गया छे, ते स्थिति आपणे पण प्राप्त करी शकीए, कारण के आपणो आत्मा पण शक्तिमां तेमना सरखोज़ छे, माटे आत्मानी अनंत शक्तिमा दृढ विश्वास राखी, आ विकट पण अत्यावश्यक कार्यमां मंड्या रहे,, एज नम्र सूचना छे. ___ स्नेह रहित पुरुषो प्रति राग न करवोः-आ तो एक सामान्य नियम छे के सरखा विचार अने वृत्तिवाळा पुरूषो एक बीजा तरफ आकर्षाय छे. प्रेम प्रेमने आकर्षे छे परंतु ज्यां प्रेमनो अभाव होय त्यां प्रेम शी रीते टकी शके ! माटे जे मनुष्यो स्नेह रहित होय, जेओ केवळ बाह्यथी मित्रता देखाडी, अंदर खानेथी अहित इच्छता होय, तेवा साथे राग न करवो; कारण के तेवा रागथी कोइ दिवस अनर्थ निपजे छे. उपर जणावेली बाबत सामान्य रीते जगतना व्यवहार आश्रयी लखायेली छे. वस्तुस्थिति विचारतां तेना करतां जुदी बाबत जणाय छे, जे खरेखरा महान् पुरूषो छे, ते सामा मनुष्यना प्रेमनी दरकार करताज नथी अन्यनुं भलं करवू, तेने सारे मार्गे चढाववो, अने तेना हितमांज पोतार्नु हित छ एम मानवं, ते संतजनोंनो स्वाभाविक धर्म छे. पोताना उच्च गुणथी अने पोताना आत्मिक प्रेमथी लुखा हृदयना मनुष्यमां पण तेवो प्रेम उत्पन्न कराववाने समर्थ थाय छे. जगतमां एवा प्रेमी पुरुषो विरला छे, पण तेओज खरेखर पूज्य छे. निःस्वार्थ प्रेम । तेनां करतां बीजुं शुं अद्भुत होइ शके ? माटे महान् पुरुषोना पगले पगले चाली प्रेम दया
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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