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________________ सुदाक्षिण्यता गुण पर -* क्षुल्लककुमार की कथा *___जैसे शिवपुर मुक्त ( मोक्ष पाये हुए पुरुषों) का आधार है, वैसे ही मुक्त (मोती) का आधार रूप साकेत नामक नगर था, वहां शत्रु रूपी हाथियों में पुडरिक समान पुडारेक नामक राजा था । उसका कंडरिक नामक छोटा भाई युवराज था और उसकी सुशील व लज्जालु यशोगद्रा नामक भार्या थी। उसे किसी स्थान में विश्रामार्थ बैठे हुए पुडरिक राजा ने देखी, जिससे वह महादेव के समान कामबाणों से आहत होकर चित्त में सोचने लगा किइस मृगलोचनी को ग्रहण करना चाहिये। इसलिए इसे (किसी प्रकार ) लुभाना चाहिये, कारण कि- मांस पाश में बंधा हुआ मनुष्य कार्याकार्य सब कुछ करता है। यह विचार कर उसने उसको तांबूलादि भेजे । यशोभद्रा ने भी अदुष्टभावा होने से अपने जेठ का प्रसाद मानकर सब स्वीकार कर लिया। ___एक दिन राजा ने दूती भेजी, तब उसने उसे निषेध कर दिया। जब वह अति आग्रह करने लगी, तब सरल हृदया यशोभद्रा उसे कहने लगी कि हे पापिनी ! क्या वह राजा अपने छोटे भाई से भी लजित नहीं होता कि जिससे निर्लज्ज होकर तेरे मुख से मुझे ऐसा संदेशा भेजता है ? ऐसा कह कर उसने उक्त दूती को धक्का देकर बाहर निकाल दिया । उसने राजा से आकर सब बात कही, तब राजा विचार करने लगा कि- जहां तक छोटा भाई जीवित है तब तक यशोभद्रा मुझे स्वीकारेगी नहीं। जिससे उस दुष्ट अज्ञान से अंधे बने हुए राजा ने गुप्त रीति से कोई प्रयोग करके अपने भाई को मरवा डाला। तब यशोभद्रा विचार करने लगी कि- जिसने अपने छोटे भाई
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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