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________________ ६ चक्रदेव की कथा - इतने ही में नंदयती वहां आ पहुंची, जिससे पूर्णभद्र वहां से तुरन्त बाहर निकल गया । तब वह विचारने लगी कि-इसने मुझे निश्चयतः जान ली है । इसलिये यह स्वजन सम्बन्धियों में मुझे प्रकट न करे, उसके पहिले ही शीघ्र इसको अमुक वस्तुएँ एकत्र कर कामण करके मार डालू। यह विचार कर उसने अपने हाथ से अनेक प्राण नाशक वस्तुएँ एकत्रित कर अंधेरे में एक स्थान पर रखने गई, इतने ही में काले नाग ने उसको डसी। उसी क्षण वह धम से भूमि पर गिरी, जिसे सुन सेवक लोग वहां आ हाहाकार करने लगे, जिससे पूर्णभद्र भी वहां आ पहुँचा और उसने होशियार गारुड़ियों को बुलवाया । तो भी सबके देखते ही देखते वह पापिनी क्षण भर में मृत्यु वश हो छठी नारको में गई, और भविष्य में अनंतों भव भटकेगी। उसे मरी देख कर पूर्णभद्र को बहुत शोक हुआ जिससे उसका मृत कार्य कर, मन में वैराग्य ला उसने दीक्षा ग्रहण कर इन्द्रिय जय करना शुरू किया । वह शुक्ल ध्यानरूप अग्नि से सकल कर्मरूप इंधन को जला, पाप रहित होकर लोकोत्तर मुक्तिपुरी को प्राप्त हुआ। __विशेष निर्वेद पाने के लिये यहां आगे पीछे के भवों का वर्णन किया गया है, किन्तु यहां अशठता रूप गुण में मुख्य कार्य तो चक्रदेव ही का है। ____ इस प्रकार प्रत्येक भव में निष्कपट भाव रखने वाले चक्रदेव को कैसे मनोहर फल प्राप्त हुए, सो बराबर सुनकर हे भव्य जनों! तुम संतोष धारण करके किसी भी प्रकार परवंचन में तत्पर न होओ। * इति चक्रदेव चरित्र समाप्त *
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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