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________________ चक्रदेव की कथा US विजयान्तर्गत बहुरत्न सम्पन्न रत्नपुर नगर में रत्नसार नामक महा सार्थवाह के घर उसकी श्रीमती नामकी भार्या के गर्भ से चन्दनसार नामक पुत्र हुआ। उसने चन्द्रकान्ता नामक स्त्री से विवाह किया, और दोनों स्त्री पुरुष जिन-धर्म का पालन करने लगे। यज्ञदेव भी मृत्यु पाकर दूसरी नारकी में उत्पन्न हो, वहां से पुनः उसी नगर में एक शिकारी कुत्ता हुआ। वहां से बहुत से भव-भ्रमण करने के अनन्तर उपरोक्त रत्नसार सार्थवाह की दासी का अधनक नामक पुत्र हुआ । वहां पुनः उन दोनों की प्रीति हो गई। एक दिन राजा दिग्यात्रा को गया था, उस समय विन्ध्य केतु नामक भील सरदार ने रत्नपुर को भंग कर बहुत से मनुष्यों को कैद कर लिया। इस धर-पकड़ में वे लोग चन्द्रकान्ता को भी हर ले गये। शेष लोग इधर-उधर भाग गये। पश्चात् उक्त भीलसरदार ने वहां से लौटकर प्राचीन कुए के किनारे पडाव डाला। पूर्ण दिवस व्यतीत हो जाने पर रात्रि को प्रयाण के समय अत्यन्त आतुरता के कारण नौकर-चाकरों के अपने-अपने काम में रुक जाने पर, वैसे ही महान कोलाहल से आकाश को गूंजते हुए लश्कर व कैदियों के आगे रवाना होने पर उक्त चंदनसार की पत्नी अपने शील-भंग के भय से पञ्च परमेष्ठी नमस्कार मंत्र का स्मरण करती हुई उस कुए में कूद पड़ी। किन्तु भवितव्यता के बल से वह उथले पानी में गिरने से जीवित रह गई, पश्चात् कुए की पाल (अंदर के किनारे) में रहकर उसने कुछ दिन व्यतीत किये। इधर धाडेतियों के लौट जाते ही चन्दनसार अपने नगर में आ पहुँचा, वहां अपनी स्त्री हरण की बात ज्ञात कर वह विरह के दुःख से बड़ा दुःखी होने लगा. पश्चात् उसको छुड़ाने के लिए
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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