SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कीर्तिचंद्र राजा की कथा लड़लड़ कर छट्ठ नरक में गए पुन: कितने ही भव भ्रमण करके फिर एक राजा के पुत्र हुए। वे बाप की मृत्यु के अनन्तर राज्य के लिये कलह करते हुए मर कर तमतमा नामक सातवीं नरक में गए । ५६ इस प्रकार द्रव्य के हेतु उन्होंने अनेक प्रकार की यातनाएं सहन कीं, तथापि न तो उसे किसी को दान ही में दिया और न स्वयं ही भोग सके | पश्चात् हे राजन् ! किसी भव में उनके कुछ ऐसे ही अज्ञान तप करने से सागर का जीव तू राजा हुआ है और कुरंग का जीव तेरा भाई हुआ है । हे राजन् ! इसके बाद का समरविजय का वृत्तांत तो तुझे भी प्रत्यक्ष रीति से ज्ञात ही है, इसके अतिरिक्त वह तेरा भाई तुझे चारित्र लेने के अनन्तर पुनः एक बार उपसर्ग करेगा । तत्पश्चात् यह क्रूरता सहित रह कर त्रस और स्थावर जीवों का अहित करता हुआ, असह्य दुःखों से शरीर को जलाता हुआ अनंत भव भ्रमण करेगा । यह सुन महान् वैराग्य प्राप्त कर राजा ने अपने भानजे हरिकुमार को राज्य भार सौंप दीक्षा ग्रहण की । पश्चात् क्रमशः महान् तप से शरीर को सुखा तथा विविध पवित्र सिद्धान्त सीख, उज्ज्वल हो उसने अत्यंत कठिन एकल विहार अंगीकार किया । वह पूज्य मुनिराज किसी नगर के बाहर लम्बी भुजाएं करके कायोत्सर्ग में खड़ा था, इतने में पापिष्ट समर ने कहीं जाते हुए उसको देखा । तब वर का स्मरण कर उसने मुनि के स्कंध पर तलवार का आघात किया, जिससे उक्त मुनि अति पीडित हो तत्काल पृथ्वीतल पर गिर पड़े ।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy