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________________ ४८ लोकप्रियता गुण पर यह विनयधर स्वतः अखंडित शीलवन्त है तथापि किसी दुर्जन की संगति से यह उसकी भूल हुई जान पड़ती है। इस प्रकार नगरजनों के बोलते हुए भी जैसे मदमत्त हस्ती महावत को न गिने वैसे ही मर्यादा रूप खूटा तोड़ कर राजा अन्याय करने की ओर तत्पर हो गया और अपने सुभटों को बुलाकर कहने लगा कि-तुम जबरदस्ती उसकी स्त्रियों को पकड़ लाओ तथा उसके नौकर-चाकरों को बाहर निकाल कर उसके घर व दूकान को सील लगादो।। (पश्चात् नगर के लोगों को राजा कहने लगा कि) तुम नगर जन दोषी के पक्षपाती होते हो, परन्तु उसको मेरे सन्मुख निर्दोष ठहरावो तो मैं उसे तुरन्त छोड़ दूं। इस प्रकार कृपण मनुष्य जैसे याचकों को तिरस्कृत करता है वैसे ही राजा के अतिशय कर्कश वाणी से ताड़ित करने से नागरिक लोग अपने २ घर को भाग गये । पश्चात् विनयंधर की उन पवित्र कार्य-रत भार्याओं को सुभटों से पकड़ मंगवा कर राजा ने अपने अन्तःपुर में कैद कर लीं। उनका सुन्दर रूप देखकर राजा सोचने लगा कि मेरे अहो भाग्य ! कि जिनको मैंने सुनी थीं, वैसी उनको देखी हैं और वे ही मेरे घर में प्राप्त हुई हैं। पश्चात् राजा ने अत्यन्त मीठे वचनों द्वारा उनसे विषय प्रार्थना की तब लज्जा से नतमस्तक हुई उन महा सतियों ने उसको इस प्रकार कहा कि हाय ! हाय ! अफसोस की बात है कि मूढ़ चित्त मनुष्य परस्त्री के रमणीय रूप, को ओर देखते है, परन्तु स्वयं संसार रूप कुए में पड़ते हैं उस ओर जरा भी नहीं देखते । परस्त्री के यौवन पर दृष्टि डालने वाले लोगों को पुष्पबाण धारण करने वाला और
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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