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________________ ४४ लोकप्रियता गुण पर ___ सब किसी की निंदा करना और उसमें भी विशेष करके गुणवान पुरुषों को निन्दा करना, भोले भाव से धर्म करने वाले पर हँसना, जन पूजनीय. पुरुषों का अपमान करना । बहुजनों से जो विरुद्ध हो उसकी संगति रखना, देश कुल जाति आदि के जो आचार होवे उनका उल्लंघन करना, उद्भट वेष या भपका रखना दूसरे देख उस तरह (नाद पर चढ़कर ) दान आदि करना। भले मनुष्य को कष्ट पड़ने पर प्रसन्न होना, अपनी शक्ति होते हुए भले मनुष्य पर पड़ते हुए कष्ट को न रोकना, इत्यादिक कार्य लोक विरुद्ध जानना चाहिये । परलोक विरुद्ध कार्य वे खरकर्म याने जिन कार्यों के करने में सख्ती का व्यवहार करना पड़े वे। वे इस प्रकार हैं: बहुत प्रकार के खरकर्म जैसे कि जल्लाद का काम, जकात (कर) वसूल करने वाले का काम इत्यादि, ऐसे काम सुकृति पुरुष ने विरति न ली हो तो भी न करना चाहिये। . उभय लोक विरुद्ध कार्य वे जुगार (जुआ) आदि सात व्यसन ये हैं:-जूआ, मांस, मद्य, वेश्या, हिंसा, चोरी और परस्त्रीगमन ये सात व्यसन इस जगत में अत्यन्त पापी पुरुषों में सदा रहा करते हैं। व्यसनी मनुष्य यहां भी सुजनों में निंदित है और मरने पर व नीच मनुष्य निश्चय दुर्गति को पहुचता है। सारांश यह है कि-ये काम करने से लोगों की अप्रीति होती है, इसलिये उनका परिहार करने ही से सुजनों को प्रिय होता है और धर्म करने का भी वही अधिकारी माना जाता है, तथा दान याने सखावत, विनय याने योग्य सत्कार, तथा शील याने सदाचार में तत्पर रहना, इन गुणों से जो आढ्य याने परिपूर्ण हो वह लोकप्रिय
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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