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________________ ३८ ... . . प्रकृति-सौम्य गुण पर वहां धुधमार नामक राजा था। उसकी अंगारवती नामक पुत्री थी । उससे विवाह करने के लिये प्रद्योतन राजाने मांग की, परन्तु धुन्धमार उसे नहीं देना चाहता था। जिससे प्रद्योतन राजा ने रुष्ट हो प्रबल बल से उस नगर को आ घेरा । तब अल्पबल अन्दर के धुन्धमार राजा ने भयभीत हो नैमित्तिक से पूछा। उस नैमित्तिक ने निमित्त देखने के लिये छोटे २ छोकरों को डराया तो वे भयातुर लड़के दौड़कर नाग मंदिर में खड़े हुए वारत्त मुनि को शरण में गये। तब सहसा मुनि बोल उठे कि-डरो मत । उस पर से नैमित्तिक ने राजा धुन्धमार को कहा कि तेरो अवश्य जय होगी। ___ पश्चात् मध्याह्न के समय विश्राम लेते हुए प्रद्योतन को धुन्धमार ने पकड़ लिया और उसे अपने नगर में लाकर अंगारवतो से विवाह कर दिया। इसके अनन्तर प्रद्योतन ने शहर में फिरते हुए धुन्धमार का थोड़ा सा लश्कर देखकर अपनी स्त्री से पूछा कि-मैं किस तरह पकड़ लिया गया । उसने मुनि का वचन कह सुनाया। तब प्रद्योतन राजा उक्त मुनि के पास जाकर कहने लगा कि-हे नैमित्तिक तपस्वी ! आपको नमस्कार करता हूं । यह सुन मुनि ने प्रव्रज्या ग्रहण की थी उस समय से लेकर उपयोग देते हुए उन छोकरों को कहा हुआ वाक्य स्मरण किया, व उस वाक्य का आलोयण कर प्रतिक्रमण करके वारत्त मुनि मोक्ष को प्राप्त हुए. इस प्रकार प्रसंग में यह बात कही परन्तु यहां दृष्टान्त में तो सुजात के चरित्र ही की आवश्यकता है। इस प्रकार पवित्र रूपशाली सुजात धर्म की अतिशय उन्नति का हेतु हुआ। अतएव मनोहर रूपवान जीव धर्मरत्न के योग्य होता है ऐसा जो कहा गया वह बराबर है। इस भांति सुजात की कथा है ।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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