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________________ भीम की कथा तैसे जीव त्रसपना पाता है, वहां से जो लघु कर्म हो तो पंचेन्द्रियत्व पाता है । वहां भी पुण्यवान न हो तो आर्य क्षेत्र में मनुष्यत्व नहीं पा सकता, कदाचित् आर्य क्षेत्र में जन्मे तो भी कुल जाति बल और रूप मिलना कठिन हो जाता है यह सब कदाचित् पावे-तथापि अल्पायु अथवा व्याधिग्रस्त होता है। दीर्घायुषी और निरोगी तो पुण्ययोग ही से हो सकता है। निरोगीपना प्राप्त होने पर भी-ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण कर्म के बल से विवेकहीन जीव जिनधर्म नहीं पा सकता । जिनधर्म पाकर भी दर्शन मोहनीय कर्म के उदय के कारण जीव शंकादिक से कलुषित हृदय होकर गुरु वचन को ग्रहण नहीं कर सकता । निर्मल सम्यक्त्व पाकर गुरु के वचन को सत्य माने, तो भी ज्ञानावरण के उदय से गुरु के कहते हुए भी उसका मर्म नहीं समझ सकता । कदाचित् कहे हुए (मर्म को) भी समझे साथ ही स्वयं समझ कर दूसरे को भी बोधित करे, तो भी चारित्र-मोह के दोष से स्वयं संयम नहीं कर सकता। चारित्र-मोहनीय क्षीण होते जो पुरुष निर्मल तपसंयम करे वह मुक्ति सुख पाता है ऐसा वीतराग ने कहा है। चुल्लक, पाशक, धान्य, यूथ, रत्न, स्वप्न, चक्र, चर्म, धूसर, परमाणु ये दश दृष्टान्त शास्त्र में प्रसिद्ध हैं । इन दशों दृष्टान्तों द्वारा यह सर्व मनुष्य-भव क्रमशः दुर्लभ है, अतएव उसे पाकर जिनेश्वर के धर्म से उसे सफल करो। ___ अब (देशना पुरी हो जाने से ) अवसर पाकर राजा कहने लगा कि, हे भगवान ! मेरे देखे हुए उस अतिशय दुष्ट रोगवाले ने (पूर्व भव में ) क्या पाप किया होगा ? तब इस जगह मुनिश्वर (निम्नांकित ) उत्तर देने लगे। मणिओं से सजाये हुए मंदिरों से सुशोभित मणिमंदिर नगर में सोम और भीम नाम के दो कुल पुत्र थे । वे (परस्पर मित्र होकर)
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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