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________________ अक्षुद्र गुण पर प्रसरित पराक्रमवान् हे विक्रमकुमार ! तू चिरकाल जयवन्त रह । तब मंत्री ने विक्रमकुमार को उत्तम कुल, उत्तम रूप और उत्तम पराक्रम वाला.देख कर हर्षतोष से उसके साथ अपनी कन्या का पाणिग्रहण किया । यह बात सुनकर अपनी पुत्री कमला का उसे पति जान कर हर्षित हुए वासव राजा ने सारे नगर में महोत्सव कराया। इसके बाद राजाने उक्त कुमार को मंत्री के घर से धूमधाम के साथ अपने घर पर बुलाया । वहां वह अपनी सब स्त्रीयों के साथ देव के समान सुख पूर्वक रहने लगा। ____ अब किसी समय विक्रमकुमार के पिता की ओर से पत्र आने से प्रेरित होकर कुमार अपने श्वसुर राजा की आज्ञा ले चारों स्त्रीयों के साथ तिलकनगर में आ पहुचा । (वहां आकर) कुमार ने माता पिता को प्रणाम किया. इतने में उद्यानपाल ने आकर राजा को विदित किया कि-श्री अकलंक नामक सूरि (उद्यान में) पधारे हैं । तब कामदेव के समान झलकते ठाठबाठ से कुमार सहित राजाने गुरु को वंदन करने के लिये जाते हुए मार्ग में एक मनुष्य को देखा । वह मनुष्य किलविल करते कीड़ों की जाल से भरा हुआ, मक्षिकाओं से व्याप्त, निकृष्ट कुष्ठ से फूटे हुए मस्तक वाला और अति दीन-हीन स्वरवाला था। उस अरिष्ट मंडल के समान न देखने योग्य मनुष्य को देख कर राजा विषाद से मलीन मुख होकर गुरु के समीप आकर, वंदना करके धर्मकथा सुनने लगा। (गुरु उपदेश देने लगे कि-) यह जीव अनादि काल से शरीर के साथ कर्मबन्धन के संयोग से मिलकर हमेशा दुःखी रहता हुआ अनादि से सूक्ष्म वनस्पतिकाय में रहकर अनंतों पुद्गलपरावत्त वहां पूरे करता है । पश्चात् बादर स्थावरों में आकर वहां से जैसे
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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