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________________ भुवनतिलक कुमार की कथा २२३ नामक स्थल में महान् आयुष्य वाला याने कि तैतीस सागरोपम की आयुष्य से नारकी हुआ। वहां से मत्स्य हुआ, वहां से पुनः नरक में गया । इस प्रकार हर स्थान में दहन, छेदन व भेदन को वेदना से पीड़ित होता रहा । ऐसा बहुत से भव भ्रमण करके, पश्चात किसी जन्म में अज्ञान तप कर धनद राजा का यह अतिवल्लभ पुत्र हुआ है। - ऋषिघात में तत्पर होकर पूर्व में इसने जो अशुभ कर्मसंचय किया है । उसके शेष के वश से इस समय यह कुमार ऐसी अवस्था को प्राप्त हुआ है । तब भयातुर कंठीरव ने प्रणाम कर उक्त ज्ञानी से कहा कि- हे नाथ ! अब वह किस प्रकार आराम पावेगा ? तब मुनीश्वर बोले इसका वह कर्म लगभग क्षीण होने आया है । और इस समय वह वेदना से रहित हो गया है व यहां आने पर उसे सर्वथा आराम हो जावेगा यह सुन मंत्री आदि लोग प्रसन्न होते हुए कुमार के पास पहुंचे और देखा कि कुमार लगभग सावधान हो गया है । उसको उन्होंने केवली का कहा हुआ पूर्वभवादिक का वृत्तान्त कह सुनाया। तब वह भयातुर होने के साथ ही प्रमुदित होकर सुगुरु के पास गया । व उसने कंठीरव आदि के साथ सूरि को वन्दना करके अति भयानक संसार के भय से डरते हुए दीक्षा ग्रहण की। __ यह बात सुन यशोमती ने भी वहां आकर दीक्षा ली। शेष लोगों ने वहां से लौटकर यह बात राजा धनद को सुनाई। अब कुमार पूर्वकृत अविनय के फल को मनमें स्मरण करता हुआ अतिशय विनय में तत्पर रहकर थोड़े ही समय में गीतार्थ हो गया । वह अब वैयावृत्त्य और विनय में ऐसा
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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