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________________ २१२ वृद्धानुगत्व गुण पर अब राजा ने गुरु को पूछा कि-यह पुरुष ऐसा क्यों है ? गुरु ने स्पष्ट कहा कि- तीव्र स्पर्शन के दोष से वह ऐसा हो गया है। राजा पुनः बोला:-भविष्य में इसको क्या होने वाला है ? गुरु बोले कि-क्षण भर बाद यह जैसे वैसे चैतन्य हो, यहां से भागकर कर्मपूर ग्राम के समीप रथ तालाब में थककर स्नान करने को उतरेगा । वहां पहिले ही से स्नान करने को उतरी हुई चांडालिनी को लग जाने से, उसे ( ऊपर खड़ा हुआ ) चांडाल एक बाण से मार डालेगा। वहां से वह नरक में जावेगा । वहां से अनन्तबार तियंच होकर पुनः नरक में जावेगा । इस प्रकार संसार में भटका करेगा। ___ यह सुन राजा अत्यन्त क्रुद्ध होकर मंत्री को कहने लगा कि-हे मंत्री ! इस स्पर्शन को शीघ्र ही मेरे देश से निकाल दो। यदि जो यह पुनः लौट कर आवे तो लोहे की घाणी में डाल कर ऐसा पीलो कि भस्मसात् हो जावे। तब सूरि महाराज बोले कि-हे नरेश्वर ! अन्तरंग शत्रु को जीतने में बाहिरी उपाय नहीं चल सकते । तब राजा पुनः भक्ति पूर्वक गुरु को पूछने लगा कि-हे स्वामिन् ! तो अन्य कौनसा उपाय है ? पूर्ण ज्ञानी गुरु बोले ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, संतोषरूप अप्रमाद नामक यंत्र, जिसको कि साधु फिराते हैं । वही अंतरंग शत्रुरूप हाथी का ध्वंस करने में सिंह का काम करता है, और अपार संसार सागर में प्रवहण (जहाज ) का कार्य करता है। . यह सुन कर यतिधर्म पालन करने में अशक्त राजा व मध्यम कुमार ने सम्यक्त्वमूल निर्मल श्रावक धर्म को स्वीकार किया।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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