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________________ मध्यमबुद्धि की कथा बचते हैं । हे देवों के देव ! गंभीर नाभिवाले नाभिराजा के पुत्र, तेरे अति गुणों से जो स्वयं बंधते हैं, वे उलटे मुक्त होते हैं । यह आश्चर्य की बात है । हे देव ! तेरा नाम रूपी सन्मंत्र जिसके चित्त में चमकता नहीं उसको लगा हुआ मोहरूपी सर्प का विष किस प्रकार उतर सकता है ? २११ हे देव ! जो तेरे चरण कमल को नित्य स्पर्श करते हैं, उनको तीर्थंकर आदि की पदवी अधिक दूर नहीं रहती । सम्यंकू दर्शन, ज्ञान, वीर्य व आनन्दमय और अनंतों जीवों के रक्षण करने में चित्त रखने वाले आपको नमस्कार हो । इस प्रकार युगादि जिन का जो मनुष्य नित्य स्तवन करते हैं वे देवेन्द्र समूह को वन्दनीय होकर महोदय प्राप्त करते हैं । इस प्रकार तीर्थंकर की स्तुति करके, मंत्रीश्वर हर्ष पूर्वक सूरि महाराज के चरणों में नमकर, इस प्रकार देशना सुनने लगा । मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं । अधम, मध्यम, व उत्तम । उनमें जो अधम होते हैं वे दुःख दायक स्पर्शन में लीन रहते हैं। जो मध्यम होते हैं वे मध्यवर्त्ती होते हैं और जो उत्तम होते हैं, वे स्पर्शन के सदा शत्रु रहते हैं । अधम नरक में जाते । मध्यम स्वर्ग में जाते हैं और उत्तम मोक्ष में जाते हैं । यह उपदेश सुनकर मनीषी कुमार, मध्यम कुमार और राजा आदि अत्यन्त भावित हुए, किन्तु बाल तो एक मन से मदनकंदली की ओर ही देखता रहा । इतने में कुमित्र और माता की प्रेरणा से पुनः वह रानी के सन्मुख दौड़ा, तो राजा कुपित होकर बोला कि अरे ! यह तो वही बाल है । तब राजा के भय से कामावेशी बाल भागने लगा व भागता भागता थककर अचेत हो भूमि पर गिर पड़ा ।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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