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________________ मध्यमबुद्धि की कथा बांधकर कुए में गिरने को उद्यत हुआ। इतने में उसे नन्दन नामक राजकुमार ने रोका। ___ पश्चात् नंदन के पूछने पर उसने सम्पूर्ण वृत्तांत सुनाया, तो नन्दन ने उसे कहा कि जो ऐसा है तो, सिद्ध के समान तेरा इष्ट पूर्ण हुआ समझ । वह इस प्रकार कि यहां हरिश्चन्द नामक राजा है । उसे दुश्मन दबाने लगे तो उसने अपने मित्र रतिकेति नामक विद्याधर को प्रणाम कर प्रार्थना करी कि- हे मित्र तू किसी भी प्रकार ऐसी युक्ति कर कि मेरे शत्रु का नाश हो । तब उसने राजा को शत्रुविनाशिनी विद्या दी । तब से राजा ने उसकी छः मास पर्यन्त की पूर्व सेवा पूरी करी है, और अब उसकी साधना करने का अवसर प्राप्त हुआ है । जिससे होम करने के लिये रतिकेति विद्याधर आठ दिन पहिले किसी लक्षणवान पुरुष को आकाश मार्ग से लाया हुआ है। उस मनुष्य को राजा ने रक्षार्थ मुझे ही सौंपा है। तब मध्यम बोला कि- यदि ऐसा ही है तो उसे मुझे शीघ्र बता । तब उसने उसे अस्थिपिंजर बने हुए उसको बताया तो उसे पहिचान कर मध्यम कुमार करुणा ला उसके पास से मांगने लगा, तो उसने तुरन्त ही उसको इसके सुपुर्द कर दिया । और उसने मध्यम को कहा कि यह कार्य राज्यद्रोह है। इसलिये यहां से तू शीघ्र दूर हो । मैं अपना बचाव स्वयं कर लूंगा। तब मध्यमकुमार उसका उपकार मान, बाल को साथ ले डरता डरता शीघ्र वहां से निकल क्रमशः अपने नगर में आया । अनन्तर बाल जैसे तैसे कुछ बलवान हुआ। तब उसने नंदन के समान ही अपना सब वृत्तान्त कहा । इस समय मनीषीकुमार भी
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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