SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८८ वृद्धानुगत्व गुण पर इस प्रकार जिनवचन रूप पुष्पों में भ्रमर के समान प्रीति रखने वाला सुबुद्धि मंत्री स्पष्टतः विशेषज्ञत्व गुण के योग से स्वपर हित कर्ता हुआ । अतएव हे बुद्धिमान जनों ! तुम संसार से तारने में नौका समान इस गुण को धारण करो। इस प्रकार सुबुद्धि मंत्री की कथा पूर्ण हुई । विशेषज्ञत्व रूप सोलहवां गुण कहा । अब वृद्धानुगत्व रूप सत्रहवां गुण कहते हैं। बुढो परिणयबुद्धी पावायारे पवत्तई नेत्र । बुड्ढाणुगो वि एवं संसगिकया गुणा जेण ।। २४ ।। मूल का अर्थ वृद्ध पुरुष परिपक्व-बुद्धि होने से पापाचार में कभी प्रवृत्त नहीं होता इसी प्रकार उसका अनुगामी भी पापाचार में प्रवृत्त नहीं होता क्योंकि संगति के अनुसार गुण आता है। टीका का अर्थ-वृद्ध याने अवस्थावान् पुरुष परिपक्व बुद्धिवाला याने परिणाम सुन्दर बुद्धिवाला अर्थात् विवेक आदि गुणों से युक्त होता है। तथाचोक्त-तपः-श्रुत-धृति-ध्यान-विवेक-यम-संयमैः । ये वृद्धास्तेऽत्र शस्यन्ते, न पुनः पलिताङ् कुरैः ॥ १॥ जो तप, श्रुत, धैर्य, ध्यान, विवेक, यम और संयम से बड़े हुए हों वे वृद्ध हैं न कि जिनके श्वेत केश आ गये हैं वे । सत्तत्त्वनिकषोद्भूत, विवेकालोकवर्द्धितम् । येषां बोधमयं तत्त्वं, ते वृद्धा विदुषां मताः ॥२॥
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy