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________________ सुबुद्धि मंत्री की कथा १८७ कहने लगा। मंत्री ने पहिले उसे मुनिजन में स्थित चातुर्याम धर्म सुनाया । पश्चात् सम्यक्त्व मूल गृहस्थ धर्म सुनाया । जिसे सुन राजा बोला कि-हे अमात्यवर ! यह निग्रंथ-प्रवचन सत्य व सर्वाधिक है और मैं इसे उसी प्रकार स्वीकार करता हूँ । परन्तु (अभी ) मैं तुझसे श्रावक धर्म लेना चाहता हूँ । तब मंत्री बोला कि- हे स्वामिन् ! बिना विलंब ऐसा ही करो । तदनुसार जितशत्रु राजा सुबुद्धि मंत्री से हर्षित हो भली भांति बारह प्रकार का गृहस्थ धर्म स्वीकारने लगा। इतने में वहां स्थविर मुनियों का आगमन हुआ । उनको वन्दना करने के लिये राजा वहां गया। वहां मंत्री ने धर्म सुन, हर्षित हो गुरु से विनंति करी कि आपसे मैं प्रव्रज्या लूगा । किन्तु राजा से पूछ लू। तब गुरु बोले कि- हे मंत्री ! शीघ्र ही ऐसा कर । जब उसने राजा से पूछा तो वह बोला कि-हे मंत्री ! अपने इस राज्य का कुछ समय पालन करके अपन दोनों दीक्षा लेंगे। मंत्री ने कहा कि-ठीक तो ऐसा ही करेंगे। यह कहकर उन दोनों ने धर्म का पालन करते हुए बारह वर्ष व्यतीत किये। अब पुनः वहां स्थविर आये उनसे धर्म सुन कर राजा ने अपने अदीनशत्रु नामक पुत्र को राज्य भार सौंप बुद्धिमान् सुबुद्धि मंत्री के साथ प्रवचन की प्रभावना करते हुए, इन्द्रादिक को आश्चर्यान्वित कर दीक्षा ग्रहण की। वे दोनों उग्रातिउग्र विहारी होकर ग्यारह अंग पढ़कर, अति शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालनकर निरतिचार पन से दीक्षा का पालन करने लगे। वे सकल जीवों की रक्षा करते हुए शुक्ल ध्यान में लीन हो, केवलज्ञान पाकर सिद्धि को प्राप्त हुए। ...
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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