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________________ पकारी श्री हरिभद्रसूरि ने निम्नानुसार कहा है:-- " वहां जो अर्थो होवे, समर्थ होवे, और सूत्र में वर्णित दोष से रहित होवे वह (सुनने का) अधिकारी जानो, अर्थो वह कि जो विनीत होकर सुनने को आतुर होवे और पूछने लगे।" ‘जनों को' इस बहुवचनान्त पद से यह बताया है कि फक्त बड़े मनुष्य ही को उद्देश्य करके उपदेश देना यह नहीं रखना, किंतु साधारणतः सबको समानता से उपदेश देना, जिसके लिये सुधर्मस्वामी ने कहा है कि-- "जैसे बड़े को कहना वैसे ही गरीब को कहना, जैसे गरीब को कहना वैसे ही बड़े को कहना," “ उपदेश देता हूँ" ऐसा कहने का यह आशय है कि अपनी बुद्धि बताने के लिये, अथवा दूसरे को नीचा गिराने के लिये वा किसी को कमाकर देने के लिये प्रवर्चित नहीं होता, -किन्तु किस प्रकार ये प्राणी सद्धर्ममार्ग पाकर अनन्त मुक्ति सुखरूप महान् आनंद के समूह को प्राप्त कर सकते हैं, इस तरह अपने पर तथा दूसरों पर अनुग्रह बुद्धि लाकर (उपदेश देता हूँ) जिसके लिये कहा है कि-- ___“जो पुरुष शुद्ध मार्ग का उपदेश करके अन्य प्राणियों पर अनुग्रह करता है वह अपनी आत्मा पर अतिशय महान् अनुग्रह करता है।" हितोपदेश सुनने से सर्व श्रोताओं को कुछ एकान्त से धर्म प्राप्ति नहीं होती, परन्तु अनुग्रह बुद्धि से उपदेश करता हुआ उपदेशक को तो एकान्त से अवश्य धर्मप्राप्ति होती है। इस प्रकार भावार्थ सहित प्रथम गाथा का सकल अर्थ कहा। अब दूसरी गाथा के लिये टीकाकार अवतरण देते हैं, अब सूत्रकार अपनी प्रतिज्ञानुसार कहने को इच्छुक होकर प्रस्तावना करते हैं।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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