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________________ गुणरागित्व गुण पर तेरी बुद्धिरूप नाव के बिना यह कष्ट सागर तैर के पार करने जैसा नहीं है । तब श्रीनन्दन बोला १४६ हे पिता ! आपके सन्मुख मुझ बालक की बुद्धि का क्या अवकाश ? क्योंकि सहस्र किरण (सूर्य) के सन्मुख दीपक की प्रभा क्या शोभती है । तिलकमंत्री बोला कि हे वत्स ! ऐसा कोई नियम ही नहीं कि बाप से पुत्र अधिक गुणी नहीं होता है। देखो ! जल 'में से पैदा हुआ चन्द्र अखिल विश्व को प्रकाश देता है, वैसे ही पंक में से पैदा हुए कमल को देवता सिर पर धारण करते हैं । श्री नन्दन बोला कि जो ऐसा है तो आपके प्रताप से उसे ढूंढ लाने का एक उपाय मैं जानता हूँ । ( वह उपाय यह है कि ) मेरु समान स्थिर, चन्द्र समान सौम्य, हाथी समान बलवान, सूर्य समान महाप्रतापी और समुद्र समान गंभार, ऐसा विजयसेन राजा का पुरन्दर नामक कुमार वाराणसी नगरी से देशाटन करने के मिष से यहां आया हुआ है । वह मेरा मित्र है तथा वह उसकी चेष्टाओं से विद्या सिद्ध जान पड़ता है, अतएव बन्धुमती को ढूंढ लाने में वही समर्थ हैं । तब पिता के यह बात स्वीकार करने पर श्रीनन्दन कुमार के पास आ उसकी यथोचित् विनय कर के उसे राजा के पास बुला लाया । राजा उसका योग्य सत्कार कर कहने लगा कि - अहो ! हमारी भूल देखो कि मेरे मित्र विजयसेन का पुत्र यहां आकर रहते हुए हम उसको पहिचान कर सन्मान नहीं दे सके । तब
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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