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________________ जिस हेतु से कर्म को विदारण करते हैं, तप से विराजते हैं, और तपवीर्य से युक्त हैं उसी से वीर नाम से स्मरण किये जाते हैं, ___ उन वीर को अर्थात् श्रीमान् वर्द्धमान स्वामी को कैसे बीर को ? (वहां विशेषण देते हैं कि) 'सकलगुण-रत्नकुलगृह' (अर्थात) सकल समस्त जो गुण-क्षांति मार्दव आर्जवादिक-वे ही भयंकर दारिद्र मुद्रा को गलाने वाले होने से वैसे ही सकल कल्याण परंपरा के कारणभूत होने से रत्नरूप में (मानेजाने से) सकल गुण रत्न (कहलाते हैं) उनके जो कुलगृह अर्थात् उत्पत्ति स्थान हैं, ऐसे वीर को पुनः कैसे वीर को-(वहाँ दुसरा विशेषण देते हैं कि) विमलकेवल' अर्थात् विमल याने ज्ञान को ढांकने वाले सकल कर्म परमाणु रज के सम्बन्ध से रहित होने से निर्मल, केवल अर्थात् केवल नामक ज्ञान है जिनको वे विमलकेवल-ऐसे उन वीर को, सम्बन्धक भूत कृदन्त का क्त्वा प्रत्यय उत्तरक्रिया की अपेक्षा रखने वाला होने से उत्तरक्रिया कहते हैं, (सारांश कि सकल गुण रत्न कुलगृह विमलकेवलज्ञानी वीर को नमन करके पश्चात क्या करने वाला हूं, सो बताते हैं।) 'वितरामि' अर्थात देता हूँ, क्या -उपदेश'-कहना वह उपदेश अर्थात् हित में प्रवृत होने और अहिंत से निवृत होने के लिये जो वचन रचना का प्रपंच (गोठवणी) वह उपदेश, ___किसको उपदेश देता हूँ ? जनोंको-लोगोंको, कैसे जनों को? धर्मरत्न के अर्थियों को, __ दुर्गति में पड़नेवाले प्राणियों को (पड़ते हुए) धारण करे और सुगति में पहुचावे वह धर्म, जिससे कहा है कि:
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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