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________________ सोमवसु की कथा १३७ उसने प्रथम पद का अर्थ तो उक्त मुनियों के ग्रहण किये हुए आहार को देखकर ही जान लिया था । परन्तु शेष पद जानने के लिये वह रात्रि को वहीं ठहरा । तब आवश्यकादिक कर पोरिसी कहकर आचार्य की आज्ञा ले मुनि-गण सोये । इतने में आचार्य उठे। उन्होंने उपयुक्त होकर वैश्रमण नाम का अध्ययन परावर्तन करना शुरू किया । इतने में कुबेर देवता का आसन चलायमान होने से तत्काल वहां वह उपस्थित हुआ। वह एकाग्र चित्त से उक्त अध्ययन सुनने लगा । पश्चात् ध्यान समाप्त होने पर वह गुरु चरणों को नमन करके कहने लगा कि- जो इच्छा हो सो मांगो । तब गुरु बोले कि-तुझे धर्मलाभ होओ। तब देदीप्यमान मनोहर उक्त कुरेर अति हर्षित मन से गुरु के चरणों को नमन करके स्वस्थान को गया । ____ यह देख कर सोमवसु ने अति हर्षित हो शुद्ध धर्म रूप धन पाया । वह मनमें सोचने लगा कि--अहो ! इन गुरु-भगवान की त्रिलोक प्रसिद्ध कैसी निरीहता है । पश्चात् उसने अपना वृत्तान्त कह कर सुघोषगुरु से दीक्षा ग्रहण करो। इस प्रकार वह मध्यस्थ और सौम्यदृष्टि रखता हुआ अनुक्रम से सुगति को पहूँचा। इस प्रकार सोमवसु को प्राप्त हुए बोधिलाभ रूप श्रेष्ठतम फल का विचार करके हे भव्यों ! तुम शुद्ध भाव से माध्यस्थ्य गुण धारण करो। सोमवसरि कथा पूर्वसुई।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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