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________________ १३४ सौम्यदृष्टित्व गुण पर सोमवसु ने पूछा कि- पहिले तो नहीं देता था और अब क्यों देता है ? तब उक्त छड़ीदार बोला कि- पहिले स्वामी को देने से भक्ति मानी जाती है । ऐसा न करने से उनकी अवज्ञा होती है। इसलिये जो बाकी रह जाय वह शेष मनुष्यों को शेषा समान देना चाहिये । इतने में वहां दो मनुष्यों ने आचमन मांगा। तब एक युवती ने एक पुरुष को तो झारी में भर कर दिया और दूसरे को लम्बी लकड़ी में बंधे हुए उलीचने से दिया। तब सोमवसु ने द्वार-पाल को इसका कारण पूछा। वह बोला कि- हे भद्र ! पहिला इसका पति है और दूसरा पर-पुरुष है, इसलिए इसी प्रकार देना उचित है। इतने में वहां बहुत से भाट चारणों से प्रशंसित बुद्धिशाली उत्तम शिबिका पर चढ़कर एक तरुण कुमारी आई। सोमवसु ने पूछा कि-यह कौन है और इधर क्यों आ रही है ? तब द्वारपाल बोला कि- हे भद्र ! यह पंडितजी की पुत्री है। यह दरबार में जाकर समस्या के पद पूर्ण कर अति सम्मान प्राप्त कर अपने घर आई है व इसका नाम सरस्वती है। ___- उसने कौन-सा पद पूर्ण किया । यह पूछने पर द्वारपाल बोला कि- राजा ने यह पद पकड़ा था कि “ वह शुद्ध होने से शुद्ध होता है। उसने उक्त पद इस प्रकार पूर्ण कियातद्यथा- यत्सर्वव्यापकं चित्तं, मलिनं दोषरेणुभिः।। सद्विवेकांबुसंपर्कात् , तेन शुद्ध न शुद्धथति ॥ जो यह सर्व में व्यापक चित्त दोष रूप रज से मलिन है. उसे सद्विवेक रूप पानी के संपर्क से शुद्ध किया जाये तो वह शुद्ध होने से शुद्ध होता है।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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