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________________ सोमवसु की कथा १३३ तथा चोक्त-सुख शय्या सनं वस्त्रं, तांबूलं स्नान मंडनं । दंतकाष्टं सुगंधं च, ब्रह्मचर्यस्य दूषणं ।। कहा है कि- सुखशय्या, सुखासन, सुन्दर वस्त्र, तांबूल, स्नान, शृगार, दन्त धावन और सुगंध. ये ब्रह्मचर्य के दूषण हैं। ____ यह सोचकर उसने लिंगी को पूछा कि- हे भद्र ! तेरा गुरुभाई कहाँ है, सो कह । उसने उत्तर दिया कि- वह अमुक ग्राम में रहता है। दूसरे दिन सोमवसु वहां पहुंचा और सुयश के मठ में ठहरा। पश्चात् दोनों जने एक महर्द्धिक श्रेष्टि के घर जीमे । तदनन्तर उसके सुयश को तत्त्व पूछने पर उसने पूर्व का वृत्तान्त सुनाकर कहा किमैं एक दिन के अन्तर से जीमता हूँ, जिससे वह मुझे मीठा लगता है। ध्यान और अध्ययन में प्रशांत रह कर कहीं भी सुख से सो जाता हूँ और निरीह रहने से लोकप्रिय हूँ । इस प्रकार गुरु-वचन पालता हूँ। यह सुन ब्राह्मण विचारने लगा कि, उस (यश) से यह अच्छा है. तथापि गुरु वचन अभी गंभीर जान पड़ता है. अतएव उसका अभिप्राय कौन जा सकता है ? किन्तु किसी भी उपाय से मुझे इस वचन का शुद्ध अर्थ जानना चाहिये। इस प्रकार चिंता से संतप्त होता हुआ वह पाटलिपुत्र नगर में आया। ___यहां शास्त्र के परमार्थ को जानने वाले, जैन सिद्धांत में कुशल त्रिलोचन नामक पंड़ित के घर वह पहुँचा। घर में जाते उसे द्वारपाल ने अवसर न होने का कहकर रोका, इतने में दातौन और फूल लेकर एक सेवक आया। तब सोमवसु के दातौन मांगते हुए भी वह न देते हुए भीतर चला गया, बाद तुरन्त बाहर निकल कर बिना मांगे देने लगा।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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