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________________ १११ यशोधरा की कथा अपने हाथ से पकड़ लिया। तब राजा विचारने लगा कि- यहां एक ओर तो माता का वचन जाता है और दूसरी ओर जीव हिंसा होती है । अतएव अब मुझे क्या करना चाहिये । अथवा गुरु वचन के लोप से भी व्रत भंग करने में विशेष पाप है, इसलिये आत्म घात करके भी प्राणियों को रक्षा करनी चाहिये। यह सोचकर राजा ने म्यान में से भयंकर तलवार खींच ली। तब हा हा ! करती हुई माता ने उसकी बाहु पकड़ रखी । वह बोली किहे वत्स ! क्या तेरे मरने के अनन्तर मैं जीवित रहूंगी ? यह तो तू मातृवध करने ही को तैयार हुआ जान पड़ता है। इतने में कुक्कुट (मुगा) बोला सो उसने सुना, जिससे वह बोला कि- हे वत्स ! इस मुर्गे को तू मार । कारण यह कल्प है कि ऐसा कार्य करते जिसका शब्द सुनने में आवे उसे अथवा उसके प्रतिबिंब को मारकर अपना इष्ट कार्य करना । राजा बोला कि- हे माता ! मन, वचन और काया से मैं अन्य जीव को मारने वाला नहीं, तब माता बोली, कि हे वत्स! जो ऐसा ही है तो आटे के बनाये हुए मुर्गे को मार । तब मातृ स्नेह से उसका मन मोहित हो गया और उसकी ज्ञान चक्षु बन्द हो गई। जिससे उसने विवेक हीन होकर माता का वचन स्वीकार किया । कारण कि बहुत सा विज्ञान हो तो भी अपने कार्य में वह उपयोगी नहीं होता। जैसे कि- बड़ी दूर से देखने वाली आंख भी अपने आपको नहीं देख सकती। पश्चात् राजा के हुक्म से शिल्पकार लोगों ने तुरत आटे का मुर्गा बना कर यशोधरा को दिया । तदनन्तर यशोधरा राजा के साथ कुल देवता के पास जाकर कहने लगी कि- इस मुर्गे से संतुष्ट होकर मेरे पुत्र के कुस्वप्न की नाशक हो।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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