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________________ दयालुत्व गुण पर ११० शान्ति कर्म है। और दूसरे का अल्पातिअल्प भी बुरा नहीं विचारना यही सर्वार्थ साधन में समर्थ है। यशोधरा बोली:-हे पुत्र! पुण्य व पाप परिणाम वश हैं, अथवा कि देह की आरोग्यता के लिये पाप भी किया जाय तो उसमें क्या बाधा है ? (कहा है कि-) ___ बुद्धिमान पुरुष को कारण वश पाप भी करना पड़ता है। कारण कि ऐसा भी प्रसंग आता है कि जिसमें विष का भी औषधि के समान उपयोग किया जाता है। राजा बोला:-यद्यपि जीवों को परिणाम वश पुण्य व पाप होता है, तथापि सत्पुरुष परिणाम की शुद्धि रखने के हेतु यतना करते हैं। कारण कि जो हिंसा के स्थानों में प्रवृत्त होता है उसका परिणाम दुष्ट ही होता है । क्योंकि विशुद्ध योगी का वह लिंग ही नहीं। ____ पाप को पुण्य मान कर सेवे तो उससे कोई पुण्य का फल नहीं पा सकता, क्योंकि हलाहल विष खाता हुआ अमृत की बुद्धि रखे तो उससे वह कुछ जी नहीं सकता। तीनों लोकों में हिंसा से बढ़कर कोई पाप नहीं, कारण कि सकल जीव सुख चाहते हैं व दुःख से डरते हैं । तथा हे माता ! शरीर की आरोग्यता के लिये भी जीवदया ही करना चाहिये, क्योंकि आरोग्यता आदि सब कुछ नीवदया ही का फल है। कहा है किउत्तम आरोग्य, अप्रतिहत ऐश्वर्य, अनुपम रूप, निर्मल कीर्ति, महान् ऋद्धि, दीर्घ आयुष्य, अवंचक परिजन, भक्तिवान् पुत्र-यह सर्व इस चराचर विश्व में दया ही का फल है । ___ यशोधरा बोली कि- यह वचन-कलह करने का काम नहीं, तुझे मेरा वचन मानना पड़ेगा। ऐसा कहकर उसने राजा को
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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