SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५) प्रज्ञापनासूत्रप्रवेशव्याख्या (१६) योगद्दष्टिसुमच्चय (१७) योगबिन्दु (१८) ललितविस्तरा (१६) लोकतत्त्वनिर्णय (२०) विंशतिविंशतिकाप्रकरण (२१) षड्दर्शनसमुच्चय (२२) शास्त्रवार्तासमुच्चय (२३) श्रावकधर्मविधि (२४) समराईच्चकहा (समरादित्य कथा) (२५) सम्बोधप्रकरण (२६) सम्बोधसप्ततिका प्रकरण प्रस्तुत अष्टक प्रकरण में ३२ अष्टक है। इनका विषयवस्तु आपके सामने है । भाषा की सरलता, पर विचारों की गूढ़ता इनकी विशेषता है। प्रत्येक अष्टक में अपने विषय का सीमित किन्तु सारगभित विवेचन है। यह तो आप पर निर्भर है कि आप कितना ग्रहण करते हैं । मुनिराज मनोहर विजयजी ने अपने अनुभव एवं प्राचार का पुट देकर आपके लिए यह परमौषध तैयार किया है । इसका सेवन कर हम सब कृतार्थ बनें यही भावना है । कार्तिक पूर्णिमा प्रो० सोहनलाल पटनी सन् १९७२ एम. ए. (संस्कृत, हिन्दी) हिन्दीविभाग, राजकीय महाविद्यालय सिरोही (राज).
SR No.022134
Book TitleAshtak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharvijay
PublisherGyanopasak Samiti
Publication Year1973
Total Pages114
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy