SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१६६) सत्यवाक्य केह ने ? तो के (श्रेयः के० ) कल्याण जे मोद तेनुं ( संवननं के० ) वशीकरण बे. अर्थात् सत्यबोलनार पुरुषने मोद जे जे, ते वश थाय डे. वली ते सत्यवचन केहबुं बे ? तो के (समृद्धिजननं के ) संपत्तिने उत्पन्न करना , अर्थात् सत्यवाणीवालाने संपत्ति खतः प्राप्त थाय . वली ते सत्यवचन केहबुं बे ? तो के ( सौजन्य के० ) सुजनपणानुं ( संजीवनं के) उत्पन्न करनारंडे, अर्थात् सत्यवक्ता पुरुषने सुजनता प्राप्त थाय , वली ते सत्यवचन केहQ ? तो के (कीर्तः के०) यशर्नु ( केलिवनं के०) क्रीडा करवानुं वन . अर्थात् स. त्यवक्ता पुरुष जे , ते यशस्वी थाय . वली ते सत्यवचन केहबुं ? तो के (प्रजावनवनं के०) प्रनाव जे महिमा तेनुं गृह . अर्थात् सत्यवक्ता पुरुषनो महिमा पण अधिक होय , वली ते सत्यवचन केहबु बे ? तो के ( पावनं के) पवित्र करना बे. अर्थात् सत्यवक्ता पुरुष निरंतर पवित्रज गणाय बे. माटें ए सत्यवचन सर्वथा सर्व मनुष्यो. यें बोलq ॥ श्ए ॥ टीका:- अथ सत्यवचनस्य प्रजावं कथयति ॥
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy