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________________ ( ४६ ) मिथ्याज्ञान हो तो भी असत् प्रवृत्ति होती है। उदा० भर्तृहरि जैसे को संसार का राग तो मंद पड़ गया, पर सर्वज्ञ शासन मिला हुआ नहीं होने से सूक्ष्म अहिंसामय पांच महाव्रत आदि का चारित्र हाथ नहीं लगने से सूक्ष्म जीवों की हिंसामय प्रवृत्ति चालू थी । यह मोहअज्ञान था। सर्वज्ञोक्त यथार्थं तत्त्व जानने समझने को नहीं मिले, इससे मिथ्यातत्त्व की मान्यतारूप मोह रूप में फंसे रहे । पर मुनियों को वैसा राग द्वेष या मोह न होने पर भी शास्त्र बोध उतना विस्तृत न हो या विस्मरण हो जाय अथवा संदेह उत्पन्न हो, तो इससे भी भूल वगैरह के कारण से असत् प्रवृत्ति आना संभव है। यह भी एक प्रकार का मोह हुआ। ___ सारांश यह कि रागद्वेष और मोह ये संसार के कारण हैं। आर्त ध्यान के मूल में ये काम करते हैं और आर्तध्यान के साथ रहकर उसे मदद करते रहते हैं। इससे यदि रागादि संसार के कारण हैं, तो उससे समर्थित आर्त ध्यान संसार-वृक्ष का बोज हो, इसमें आश्चर्य क्या ? आत ध्यान बीज का काम करता हैं, उस पर संसार वृक्ष बढता है, विस्तृत होता है।। प्रश्न- ठीक है, परन्तु यदि वह सामान्यत: संसार वृक्ष का बीज हो तो उसे तिर्यंचगति का मूल-कारण क्यों कहा जाता है ? उत्तर- असल में आर्त ध्यान मोक्षगति का कारण न होकर तिर्यंचगति का कारण होने से ही संसार का कारण है, संसार वृक्ष का बीज है। तिर्यंचगति संसार ही है। दूसरे इसकी व्याख्या इस तरह करते हैं कि तिर्यंचगति में बहुत ज्यादा जीव हैं। संसारी जीवों का अधिकांश हिस्सा अर्थात् अनन्तानन्त जीव तिर्यंचगति के एकेन्द्रिय साधारण वनस्पतिकाय में हैं। उसकी स्वकाय स्थिति भी बहुत लम्बी है । अर्थात् इन जीवों का ऐसी ही एकेन्द्रिय काया मे सतत् जन्म मरण करने का उत्कृष्ट काल बहुत लम्बा है, अनन्त उत्सर्पिणी
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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