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________________ ( ४५ ) . प्रश्न- संसार के कारण तो मिथ्यात्वादि पांच हैं, रागादि किस तरह ? - उत्तर- मिथ्यात्वादि भी रागादि की नींव पर ही निभते हैं, अत: असल में रागादि ही कारण कहे जाते हैं। रागादि नींव इस तरह हैं:- (१) अनंतानुबंधी कषाय याने रागद्वेष हों, वहां तक मिथ्यात्व नहीं हटता । यदि मिथ्यात्व हट भी गया हो, और रागादि का उदय हो जाय तो मिथ्यात्व पुन: जाग्रत हो जाता है। तब (२) अधिरति भो, अप्रत्याख्यानीय कक्षा के कषाय याने रागद्वेष उदय में हों, वहां तक खड़ी रहती है। इससे यहां भी मूल में राग द्वष ही हुए। (३) कषाय तो राग द्वेष रूप ही हैं । अथवा यों कहा जा सकता है कि क्रोध मानादि कषाय भी कहीं तो राग या कही द्वेष के कारण प्रकट होते हैं । (४) योग याने मन वचन काया की अशुभ प्रवृत्ति भी मूल में राग द्वष होने पर ही निभती है । असत् विचार, पापवाणी या अशुभ बर्ताव भी किसी न किसी पर राग या द्वेष के कारण ही उत्पन्न होता है। (५) प्रमाद मे भी राग द्वेष काम करते होते हैं, यह समझ में आ सकने जैसा है। ऐसे जिस तरह मिथ्यात्वादि पांचों संसार हेतु है वैसे ही उसके नींव रूप राग द्वेष तो जरूर ही संसारहेतु कहलाते हैं। प्रश्न- तो फिर संसारहेतु राग द्वेष को ही कहो, उसमें होते समाविष्ट होने वाले मिथ्यात्वादि को क्यों कहते हो ? ____उत्तर- राग द्वेष पर मिथ्यात्व आदि भिन्न भिन्न असद् भाव हैं, यह बताने के लिए ही उसे अलग अलग कहा। प्रश्न- ठीक है, तो मोह को अलग क्यों बताया ? . उत्तर- मोह यह मिथ्या ज्ञान रूप, भ्रम रूप है अथवा अज्ञान विस्मरण या संशय रूप है। कहीं राग का जोर न हो तब भी
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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