SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १९ ) मिलती है। वहां सुख मिला ऐसा कहा जायगा। प्रश्न-तब भी 'निर्वाण' का विशेष अर्थ मोक्ष होता है, तो धर्मध्यान को मोक्ष साधन कहा है किस तरह ? . उत्तर - धम ध्यान आगे जाकर शुक्ल ध्यान प्राप्त करवा कर मोक्ष प्राप्ति कराने वाला बनता है अत: उसे मोक्ष साधन कहने में हर्ज नहीं । उदा सम्यग्दर्शन आगे जाकर सम्यक्चारित्र की प्राप्ति ओर साधना करवाने से मोक्षदाता बनता है, इसलिए उसे भी मोक्ष .. साधक ही कहते हैं। . आत और रौद्र ध्यान को भव के कारण कहे हैं। 'भव' याने जिसमें जोव कर्म के वश में पड़े हुए होते हैं वह; अर्थात् संसार । उसके कारण स्वरूप आतं तथा रौद्र । गाथा में तो सामान्य शब्द भव' रखा है, पर उसका विशेष बोध व्याख्या से होता है। उसके अनुसार यहां 'भव' शब्द का अर्थ चारों गति न लेकर तिर्य च और नरक गति लेने का है। ऐसी व्याख्या का कारण है (१) जैसे- अन्यत्र उपयुक्त श्लोक में कहा है वैसे दोनों दुर्ध्यान के फल ये ही हैं तथा (२) यही ग्रन्यकार आगे जाकर प्रत्येक ध्यान का विशेष फल बताते हुए आर्त का तिर्यच गति तथा रौद्र का नरक गति फल बताते हैं। वैसे ही (३) मनुष्य तथा देवगति जैसे सद्गति ऐसे अशुभ ध्यान का फल नहीं हो सकती। अत: यहां 'भव' शब्द से तियं च नरक गति लेना चाहिए। यहां तक ध्यान की सामान्यत: बात कही । अब 'यथोद्दे शनिर्देशः' याने जैसे सामान्य से सामूहिक प्रतिपादन किया उसी तरह के. क्रम. से विशेष रूप का वर्णन होता है, इस न्यास से चार प्रकार के ध्यान में से पहले आर्त ध्यान के वर्णन का मौका है । अत: अब यहां उसका वर्णन करते हैं।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy