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________________ कहा है : अट्टेण तिरिक्खगई. रुद्दज्झाणेण गम्पती नरयं । धम्मेण देवलोयं सिद्धिगई सुक्कझाणणं ।। अर्थ : आर्त से तिर्यंच गति, रौद्र से नरक गति, धर्म से स्वर्ग गति तथा शुक्ल ध्यान से सिद्धि गति मिलती है। सामान्य नाम तथा उनका विशिष्ट कार्यजनकता संक्षेप से कही जाती है। विवेचन : .. ध्यान चार प्रकार का हैः-(१) आर्त ध्यान (२) रौद्र ध्यान (३) धर्म ध्यान तथा (४) शुक्ल ध्यान। - (१) इसमें 'आर्त' शब्द 'ऋत' धातु पर से बना है। ऋत में उत्पन्न होने वाला वह आत। ऋत याने दुःख । इस निमित्त से होने वाला अध्यवसाय या एकाग्रचित्त वह आर्त ध्यान है। (२) हिंसा झूठ आदि की रुद्रता याने क्रूरता से भरा चित्त रौद्रध्यान है । (३) श्रतधर्म या चारित्र धर्म के अनुसार एकाग्रचिंतन धर्म ध्यान है। (४) आठ प्रकार के कर्म मल का शोधन करे अथवा शोक को दु:ख, ह्रास या नाश करे वह शुक्ल ध्यान । ये चार प्रकार के ध्यान हैं। ध्यान की कार्यजनकता अब प्रत्येक ध्यान के कारण क्या क्या फल मिलता है उसका विचार करें। उपर्युक्त व्याख्याओं से यह स्पष्ट है कि आर्त और रौद्र ध्यान ये दो अशुभ ध्यान हैं। तो धर्म व शुक्ल ध्यान दो शुभ ध्यान हैं। शुभ ध्यान निर्वाण याने सुख का कारण और अशुभ ध्यान भव अर्थात् दुःख का कारण है। 'निर्वाण' का सामान्य अर्थ शांति या सुख होता है। धर्म ध्यान से देवगति तथा शुक्ल ध्यान से सिद्धिगति
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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