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________________ ( ७ ) उत्तर- शुक्ल ध्यान तभी आता है जब पहले मिथ्यादर्शनं, अविरति, प्रमाद और अधिकांश (ज्यादातर) कषाय दूर हो चुकते हैं। अत: उनके दूर होने से सम्यग् दर्शन, विरति, अप्रमत्तता तथा उपशम तो साथ में खड़े ही हैं। परन्तु केवल इन्हीं में ऐसा कर्मनाश करने की ताकत नहीं है। क्योंकि इनमें अभी आत्मा विविध भावों में घूमते हुए ज्ञानोपयोग से चल या विचलित है, अस्थिर है । अस्थिर से कर्म इस तरह साफ नष्ट नहीं होंगे। तब जीव शुक्ल ध्यान में एकाग्र उपयोग में स्थिर होता है, उससे जबरदस्त कर्मनाश सुलभ हो जाता है। . महावीर प्रभु ने शुक्ल ध्यान से कर्मनाश किया है अत: वे योगेश्वर या योगीश्वर अथवा योगीस्मर्य बन गये हैं। योगेश्वर : " अर्थात् अनुपम योग अर्थात् मन वचन काया के व्यापार से प्रधान तथा अतिशयों से मुख्य । प्रभु के योग अनुपम क्यों ? इस तरहः मन:पर्याय ज्ञानी मुनि और अनुत्तरवासी देवों के संशय भगवान केवलज्ञान से जानकर द्रव्यमनोयोग से उसका छेद करते हैं अर्थात् संशय समाधान की विचारधारा के योग्य मानस पुद्गलों को व्यवस्थित करते हैं, संगठित करते हैं और उन्हें वह संशय-ग्रस्त आत्मा विशिष्ट ज्ञान से जान कर समाधान प्राप्त कर लेता है। (२) तो प्रभु का वचनयोग भी इतना ही अनुपम है। समवसरण में प्रभु की वाणी योजन-गामिनी होती है। प्रत्येक अक्षर, पद, वाक्य साफ स्पष्ट और समझने में सरल होता है। उपरांत, म्लेच्छ, आर्य तथा तिर्यंच जो भिन्न भिन्न भाषा वाले होते हैं उन्हें अपनी अपनी भाषा में वह वाणी परिणमित होकर समझ में आ जाती है । अर्थात् वचन स्वयं ही उनकी भाषा में परिवर्तित हो जाते हैं। पुन: वह
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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