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________________ ( १९० ) पुनरुक्ति दोष कहां कहां नहीं ?अनुवादादर वीप्सा भृशार्थ विनियोग हेत्वसुयासु । ईषत्संभ्रम विस्मय गणना स्मरणेष्व पुनरुक्तम् ।। अर्थः - अनुवाद, आदर, वीप्सा, "अत्यन्ततार्थे, ५सौदा, हेतु, ईर्ष्या, न कुछ, संभ्रम, १ विस्मय, ११गिनती तथा २स्मरण य पुनः बोलने से पुनरुक्ति दोष नहीं होता। उदा० (१) '१२ महिने का वर्ष होता है', इसमें वर्ष शब्द अनुवाद के लिए है अतः उसका अर्थ भी १२ महीने ही होने पर भी पुनरुक्ति दोष नहीं है । (२) आदर के लिए, 'भाई' तुम आये सा अच्छा हुआ; और देखो न ! भाई ! तुम्हारे बिना यह कार्य कौन कर सकता है ?' इसमें दूसरी बार 'भाई' के सम्बन्ध में पुनरुक्ति दोष नहीं है । (३) 'जाओ, जाओ, देखने जैसा है।' इसमें जाओ का दो बार कहना वं.प्सा कहलाता है। वह जाने का महत्त्व बताता है। इसमें भी पुनरुक्ति दोष नहीं है । (४) मनुष्य बात बात में मान करता है, मान बिना चलता ही नहीं।' इसमें मान ज्यादा (भृशं) करता है, यह बताने के लिए ही पहले वाक्य के उपरांत दूसरा वाक्य इसी अर्थ में कहा, इससे इसमें पुनरुक्ति दोष नहीं है । इसी तरह इन अन्य प्रसंगों में भी पूनरुक्ति दोष नहीं गिना जाता जसे (५) व्यापार में सौदा करने में एक बात कई बार बोली जाती है। (६) किसी प्रतिपादन को बराबर ठसाने के हेतु अनेक बार बताया जाता है। लड़के को कहा जाता है : 'देख बहुत नहीं खाना, इससे शरीर बिगड़ता है, बीमारी आती है, काम रुकते हैं। (७) ईर्ष्या में मनुष्य एक ही बात बार बार कहता है : उस सेठ का रौब कसा है ? किसी से मिलता ही नहीं! किसी के साथ बात ही नहीं करता । उसे बुलाओ न, बोलता है ? नहीं, अक्षर भी नहीं बोलेगा।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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