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________________ ( १८९) क्षायिक, क्षायोपशयिक व पारिणामिक और सांनिपातिक इन ६ प्रकार के भावों को कहते हैं। ('औयिक' भाव याने कर्म के उदय से आत्मा में उत्पन्न होने वाला परिणाम ... इत्य दि । 'पारिमाणिक' याने जीव का अनादि सिद्ध जीवत्व भव्यत्वादि परिणाम । सांनिपातिक याने औदयिकादि पांच भावों में से जीव, याने जीव में जितने भावों का सद्भाव हो वह ।) (८) पर्यायलोक याने जीव भजीव द्रव्यों के गुणपर्याय भावों का होना वह । ये सब पर्याय अनन्त न्त हैं, वह भी लोक । 'लोक' याने 'अवलोकन' हो सके वैसी वस्तु या पदार्थ; अतः वह उक्त आठ प्रकार से है। ऐसा लोक अनादि काल से चला आता है और अनन्त काल रहेगा, ऐसा जिनेश्वर भगवान ने कहा है । प्रश्न- पूर्व श्लोक में 'जिनदेशित' कह कर जिनेश्वर भगवन ने उपदेश दिया है तो कहा ही है। उसका यहां भी सम्बन्ध है, तो यहां पुन: 'जिणक्खाय' पद से यही वस्तु कही है, यह पुनरुक्ति दोष नहीं है ? ___ उत्तर- नहीं। 'जिणक्खायं' पद को पुनः लगाने का अर्थ श्री जिनेश्वर भगवान के प्रति और उनके शब्दों के प्रति आदर बताने के लिए है। यहां आदर यह है कि (i) अहो ! प्रभु कैसे करुणावान हैं कि उन्होंने यह भी कहा ! तथा (ii) अहो ! पंचास्तिकाय लोक और नाम आदि आठ प्रकार के लोक भी श्री जिनेश्वर भगवन्त ने ही कहा है !' ऐसे आदर से सम्यग्दर्शन निर्मल होता है। इससे वैसा आदर करवाने का सुन्दर लाभ देने वाला पद पुन : कहा जाय तो भी उसमें पुनरुक्ति दोष नहीं है।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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