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________________ ( १८५) में उत्पत्ति नाश व स्थिरता तीनों पर्याय रहते हैं। ऐसे ही अन्य पर्याय उदा० अगुरु लघु पर्याय, अनुवृत्ति पर्याय, व्यावृत्ति पर्याय आदि अनन्त पर्याय होते हैं। द्रव्यों में उनका चिंतन हो सकता है। ऐसे विशाल दृष्टि से वस्तु के विविध पर्यायों का चिंतन करे तो इष्ट संयोग व अनिष्ट वियोग के बारे में होने वाले आर्तध्यान से बच सकते हैं। २. पंचास्तिकायमय लोक पर चिंतन 'अरे ! यह लोक जिनेश्वर भगवान ने कैसा अनादि अनन्त पंचास्तिकायमय बताया है ।' 'लोक' याने ज्ञान में जो कुछ दिखाई दे (आलोकित हो) वह सब; अर्थात् समग्र विश्व । अनन्तज्ञानी वीतराग तीर्थङ्कर भगवन्तों ने विश्व का यथास्थित स्वरूप बताया है, वह यह कि विश्व पांच अस्तिकायमय है-धर्मास्तिकाय, अधर्मा. स्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय । इस तरह चिंतन करें। ५ अस्तिकायों की दृष्टान्त से समझावट - जिस तरह आंख वाले को वस्तुदर्शन करने में दीपक सहायक है, इसी तरह जीव पुद्गल को गति करने में धर्मास्तिकाय सहायक है। जैसे बैठने की इच्छा वाले पुरुष को स्थिर बैठने में भूमि सहायक है, वैसे जीव और पुद्गल को स्थिति या स्थिरता करने मे अधर्मास्तिकाय सहायक हैं। जिस तरह घड़ा बेर के रहने के लिए स्थान देता है, वैसे ही जीवादि चारों अस्तिकाय को आकाश रहने का स्थान देता है । जीव ज्ञान स्वरूप है, सर्व भाव का ज्ञाता है, कर्म का भोक्ता व कर्ता है । भिन्न भिन्न अनेक जीव संसारी और कोई मुक्ति रूप में हैं यह जिनागम में कहा है। तो पुद्गल स्पर्श, रस, गंध, वर्ण शब्द स्वभाववाला और इसी से मूर्तस्वभाव तथा संयोजन और
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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