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________________ ( १६२ ) 'हेतु' याने जो पदार्थ को 'हिनोति' मगज में भेजे, याने बतावे । उदा० मकान की खिड़की में से धुआ बाहर आता हुआ दिखाई दे, तो वह धुआ अन्दर अग्नि होने का बताता है। अतः धुए को हेतु कहा जाता है। यह व्यंजक हेतु बना। जिनवचन के किसी किसी कथन का याने कथित विधान का हेतु न मिले तो वह कथन समझ में नहीं आवे ऐसा हो सकता है ।। ____ 'उदाहरण' याने सचमुच बनी हुई घटना या कल्पित दृष्टांत; वह न बताया हो तो भी जिनवचन समझ में न आवे वैसा हो सकता है। इस तरह इन छ कारणों में से किसी भी कारण से जिनवचनकथित कोई वस्तु या बात बिलकुल समझ में न भी आवे या अच्छी तरह समझ में नहीं आवे; तो चाहे समझ में न आया हो, तब भी जिनवचन या तत्कथित वस्तु के लिए बुद्धिमान पुरुष यह विचार करे: जिनवचन क्यों असत्य नहीं?:-सर्वज्ञ वचन और सर्वज्ञोक्त वस्तु असत्य हो ही नहीं सकती। उसका कारण यह है कि चराचर विश्व में श्रेष्ठ जिनेश्वर भगवान को स्वयं दूसरों से उपकार हुआ हो या न हुआ हो तो भी वे उनके प्रति धर्मोपदेश आदि से अनुग्रह-कृपा-उपकार करने में तत्पर रहते हैं, उद्यक्त होते हैं । ऐसे एकान्त उपकार-प्रवृत्ति वाले जिनेश्वर को जगत को ठगने का क्या काम है कि वे असत्य बोले ? हां, उपकारी को तो कहीं कदाचित् रागादिवश असत्य बोलने का संभव हो सकता है क्योंकि (१) राग याने आसक्ति वश झूठ बोला जाता है; पैसों पर राग है अतः व्यापारी ग्राहक को झूठा कहता है। (२) द्वष याने अप्रीति के कारण भी झूठ बोला जाता है; उदा० सौतेली मां अपनी सपत्नी के (सौत के) पुत्र के बारे में पति को झूठा कहतो है। इसी तरह (३) ) राग याने आश असत्य बोलने का हो, उपकारी को
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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