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________________ ( १५७ ) साधन बिना ही साक्षात् वस्तु दर्शन जिससे हो वह प्रत्यक्ष । वह तीन प्रकार से है। (१) अवधिज्ञान से भूत भविष्य या वर्तमान को नजदी या दूर का किसी भी रूपी वस्तु को साक्षात् देख सकते हैं। (२) मनःपर्यवज्ञान से ढाई द्वीप में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मन को देख सकते हैं। (३ केवलज्ञान से लोकालोक के समस्त अनन्त काल के भावों को देख सकते हैं। सर्व जीव और सर्व पुद्गल आदि द्रव्यों के भूत, वर्तमान व भावी अनन्तानन्त पर्यायों को साक्षात् देखते हैं। ___ यह तो पारमार्थिक प्रत्यक्ष हुआ। पर व्यावहारिक प्रत्यक्ष इन्द्रियों तथा मन से होने वाला प्रत्यक्ष है । लोक-व्यवहार उसे ही प्रत्यक्ष कहता है। परमार्थ से याने सचमुच तो वह परोक्षज्ञान है। क्योंकि वह आत्मा की साक्षत् नहीं है, परन्तु इन्द्रियों द्वारा होता है। । परोक्ष अर्थात् पर याने आत्मा से पर-दूर । अर्थात् आत्मा से भिन्न बाह्य इन्द्रिय, हेतू, शब्द आदि साधन द्वारा होने वाला यथार्थ वस्तुबोध : यह पारमाथिक परोक्ष प्रमाण कहा जायगा। इसमें १. मतिज्ञान व २. श्रृतज्ञानयों दो हैं। इन्द्रयों व मन से वस्तु जानी जाय वह 'मतिज्ञान', और आगम तथा आप्त पुरुष के वचन से जो अर्तीन्द्रिय पदार्थों का भी बोध होता है वह 'श्रुतज्ञान' है। हेतु पर से होने वाला अनुमान, तर्क स्मरण प्रत्यभिज्ञा आदि मतिज्ञान के भेद हैं। यह प्रमाण-व्यवस्था भी जैन धर्म में ही मिलती है। (8) गमः याने अर्थमार्ग । जिन द्वारों से पदार्थ का विस्तृत बोध हो, उसे अर्थमार्ग कहते हैं। उदा० 'दंडक' प्रकरण
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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