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________________ ( १५६ ) आगम से, दो प्रकार से है । तथा आगम से भी वह ज्ञशरीर, भव्यशरीर, तदव्यक्तिरिक्त, ऐसे ३ प्रकार से है । उपमा संख्या पमाण ४ प्रकार से है । सत् की सत् के साथ उपमा ( जिसकी चतुभंगी होती है), उदा० अरिहंत की छाती किंवाड़ जैसी । सत् की असत् के साथ.... उदा० अनुत्तरवासी देवों का आयुष्य ३३ सागरोपम है । असत् की सत् के साथ उदा० सूखा पत्ता हरे पत्ते को कहता है 'अम वीती तुम वीतशे, धीरी कुम्पलिया' असत् की असत् के साथ ..... उदा० गर्दभशृङ्ग आकाशकुसुम जैसा है। परिमाण संख्याप्रमाण के दो भेद हैं । (i) कालिक श्रुत परिमाण में पर्याय अनन्त है। बाकी अक्षर, पद, पाद, गाथा... नियुक्ति, अनुयोग उद्द ेशक .... अंग आदि सब संख्यात है ( याने गिनती के हैं ।) (ii) दृष्टिवाद श्रुत में उपरोक्त अनुयोग तक वही है; उसके बाद प्राभृत. प्राभृतिका, वस्तु आदि । ज्ञान संख्या प्रमाण में (संख्यायते ज्ञायतें) शब्दज्ञान से शाब्दिक और गणित से गणितज्ञ आदि कहा जाता है । गणना संख्या में संख्यात, असंख्यात व अनन्त तीन भेद हैं । भावसंख्या प्रमाण में प्राकृत में 'संखा' शब्द है, इससे 'शंख' शब्द ले कर शंखगति नामकर्म को वेदे वह भावसंख कहलाता है । जिनागम की शैली से यह द्रव्य प्रमाण, क्षेत्र प्रमाण, काल प्रमाण, भाव प्रमाण, ऐसे ४ प्रमाण का विचार हुआ। बाकी सामान्य रूप से स्थूल शैली से देखने से तो प्रमाण सिर्फ दो तरह से है : १. प्रत्यक्ष, तथा २. परोक्ष । प्रत्यक्ष प्रमाण में अवधिज्ञान, मनः पर्यंवज्ञान और केवलज्ञान ये तीन प्रमाण आते हैं । यहां प्रत्यक्ष का अर्थं 'प्रति अक्षम्' अर्थात् ज्ञान सीधा आत्मा में । याने आत्मा को किसी बाह्य इन्द्रियों, या हेतु, या शब्द आदि
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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