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________________ १२. गौतम कुलक कषायों से दूर रहने का सर्व साधारण उपदेश दिया है । निष्कपाय जीवन जीने से आदमी निश्चिन्त बनता है और सुखी होता है । १२. आत्मावबोध कुलक सद्गुण प्राप्त करने के लिये आत्मा को उद्देश कर उसको जागृत रखने का उपदेश है । १३. जीवानुशास्ति कुलक मानव भौतिक सुख प्राप्त करने के लिये लालायित बना रहता है परन्तु वह सुख नश्वर है इसलिये आदमी शुभ परिणाम में वर्ते तो सद्गति प्राप्त कर सकता है । अशुभ परिणामों से दुर्गति मिलती है ऐसा उपदेश है । १४. इन्द्रियादि विकार निरोध कुलक एक एक कपाय और एक एक इन्द्रिय के विकार से मानव किस किस योनि में उत्पान्न होता है इस विषय में उपदेश है । मानव को निर्विकार होकर मुक्तिपथ का आश्रय करना चाहिये । १५. कर्म कुलक बंधे हुए कर्मों का फल हरेक आदमी को भोगने पड़ते हैं, इसमें किसी का कुछ चलता नहीं है । भ० महावीर
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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