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________________ सारांश २ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १७ नारी ८, रुचकाद्रिनी पूर्वदिशामां वास करनारी ८, रुचकाद्रिना दक्षिणमां वसनारी ८, रुचकाद्रिना पश्चिममां रहेनारी ८, रुचकाद्रिना उत्तरमां वसनारी ८, रुचकाद्रिना विदिशामां वसनारी ४ अने रुचकद्वीपना मध्यमां वसनारी ४, एवं छप्पन दिक्कुमारिओ प्रभुना जन्मस्थाने आवे छे. तेओ कदलीगृह १, भूमिशोधन करनार संवर्त्तक वायु २, सुरभिजलवृष्टि ३, जलपूर्ण अभिषेक कलश ४, आदर्श ५, बींजना ६, चामर ७, दीपक ८, अने नालच्छेद ९, आ नव कृत्य करवा पूर्वक अशुचि टाली, नाटक करी अने शुभाशीष आपीने पोत पोताना स्थानके जाय छे. आ देवीओमां दरेक देवीने चार महत्तरादेवी, चार हजार सामानिकदेव, शोल हजार अंगरक्षकदेव अने सात कटकाधिपति देवनो परिवार होय छे. तेओ एक हजार प्रमाण विमानमां सपरिवार बेशी प्रभुनो जन्मोत्सव करवा आवे छे. ३९-४० इन्द्रसंख्या अने तेओना कृत्य - भवनपतिना २०, व्यन्तरना ३२, ज्योतिष्कना २, १ - एक इन्द्रने पोताना आयुष्यमां बावीश कोटा कोटी, पंचाशी लाख इकोतेर हजार चारशो अठ्ठावीश क्रोड, सत्तावन लाख चौद दजार बशो पंचाशी इन्द्राणिओ होय छे एम ' रत्नसंचयप्रकरण ' मां कहेल ले.
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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