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________________ सारांश १ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १७ च्यवनसमय चोवीशे जिनवरोनो च्यवन अर्धी रात्रेज थाय छे. जेवी रीते आ भरतक्षेत्रमां सर्व जिनवरोना च्यवन, मास, च्यवनतिथि, च्यवननक्षत्र, च्यवनसमय अने च्यवनराशि कल छे तेवीज रीते पांच भरत अने पांच एरवत क्षेत्रमां पण समजवा जोइये. १८ जिनमाताओने आवेलां स्वप्न प्रभु च्यवीने माताना गर्भमां आवे छे त्यारे प्रभुनी माताओने १ हस्ती, २ वृषभ, ३ सिंह, ४ लक्ष्मी, ५ पुष्पमाला, ६ चन्द्र, ७ सूर्य, ८ ध्वजा, ९ कलश, १० पद्मसरोवर, ११ समुद्र, १२ विमान, अथवा भवन, १३ रत्नराशि अने १४ निर्धूमाग्नि. ए चौद महास्वमो आका - शथी उतरता अने मुखमां प्रवेश करता देखवामां आवे छे. मरुदेवीए प्रथम स्वममां वृषभ अने त्रिशलाए सिंह जोयो. तेमज नरकथी आवेल प्रभुनी माता भवन अने स्वर्गथी आवेल प्रभुनी माता विमान देखे छे. जिनेश्वरोनी १ प्रथम, द्वितीय, तृतीय नरकथी आव्या 'जिन' प्रथम नरकथी आव्या ' चक्रवर्त्ती. ' प्रथम द्वितीय नरकथी आव्या 'वासुदेव' अने 'बलदेव' तेमज बार देवलोक, प्रैवेयक अने अनुत्तर विमानथी आव्या 'जिन' स्वर्ग अने ग्रैवेयकथी आव्या वासुदेव. ' तथा भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क अने वैमानिक देवोमांथी आव्या ' चक्रवर्त्ती ' अने ' बलभद्र' थाय छे. 6
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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