SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चसप्ततिशनस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां १० पूर्वभवमां श्रुतधरत्व__ पूर्वभवमां ऋषभदेव बार अंग, अने शेष जिनेश्वर अग्यार अंग भणेला हता. एम जिनागमग्रन्थोमां जिनवरोनो ' पूर्वभवश्रुतधरत्व' कहेलुं छे. ११ जिननामकर्मोपार्जनहेतु १ अरिहंत, २ सिद्ध, ३ प्रवचन, ४ गुरु, ५ स्थविर, ६ बहुश्रुत, ७ तपस्वी, ८ ज्ञान, ९ दर्शन, १० विनय, ११ आवश्यक, १२ शील, १३ व्रत, १४ तप, १५ त्याग, १६ वैयावृत्त्य, १७ समाधि, १८ अपूर्वज्ञान, १९ श्रुतभक्ति, अने २० प्रवचनप्रभावना. आप्रमाणे वीशपदनी आराधना पेला छेला तीर्थकरे, अने शेष जिनेश्वरोमां कोइए १, कोइए २, कोइए ३ अने कोइए २० पदनी आराधना करेल छे. एना पछी ७-८, ९-१२-१३-१४-१५-१६ अने २० नंबरवाला स्थानक कोष्टकमां गोठवेलां छे. माटे ते कोष्ठकथीज जाणवा १-आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थनांग, समवायांग, भगवति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, अंतकृद्दशांग, अनुत्तरोपपातिक, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र, दृष्टिवाद, ए बार अंग अने एमांथी छेलो बाद करतां अग्यार अंग कहेवाय छे.
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy