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________________ उल्लास.] श्री पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १२७ वलयाकारने छोडिने, सर्वाकारे मीन । एहवा अवद्धश्रुत सूत्रमें, आदेशा लो चीन ॥४०१॥ १३०-१३१ साधु अने श्रावक व्रतनी संख्याऋषभ वीरना वारे, साधुने व्रत पांच । अणु गुण शिक्षा श्राद्धने, बारे संख्या जांच ।। शेष जिनना साधुने, जाणवा व्रत चार । स्त्री परिग्रह सारिखो, श्रावकने तिम बार ॥४०२ ॥ १३२ जिनेश्वरोना साधुओना उपकरणसर्व जिनोना साधुने, उपकरण चौद बार । ओधिक चौदह भेद छे, औपग्रहिकने धार ॥ ४०३ ॥ पात्र पात्रनो बंधनो, पात्र ठवण अरु होय । पात्र केसरी पडला तथा, रजस्त्राण गुच्छा जोय ॥४०४॥ पात्रना ए साते कह्या, वसन तीन वलि लेह । रजोहरण मुखवस्त्रिका, जिनकल्पि मुनि एह ॥४०५॥ मात्रक वली चोलपढ़, दो मिल चौट प्रकार।। स्थविर कल्पीने कह्या, परिग्रह ए न लिगार ॥ ४०६॥ १३३ जिनेश्वरोनी साध्वियोना उपकरणअवग्रहानन्तक पट्ट, अधोरुक चलनीक । अभ्यंतर-बाहिर निवेसनि, कंचुक उपकक्षीक ॥ ४०७ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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