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________________ उल्लास ] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १०४ जिनेश्वरोनो तीथप्रवृत्ति काल तीर्थ तीर्थकर एकनो, वरते काल प्रमाण । बीजो तीर्थ उपने नहीं, त्यां लग तेनी आण ॥ ३२०॥ ऋषभ-तीर्थ वरत्यो सहि, जाव अजितनो तीर्थ । उपनो नहीं तावल्लग, पीछे बीजो तीर्थ ॥३२१ ॥ इमहिज सर्व जिनराजनुं, वीरनो दुष्षम आर । जैनागमथी जानिये, गुरुगम लीजे धार ॥ ३२२ ॥ १०५ जिनेश्वरोनो तीर्थविच्छेद काल इग एक तिग एक तिग, इग एक क्रमसुं भाग । पल्योपम चउभागना, कालविच्छेद सुलाग ॥ ३२३ ॥ सुविधिजिनसुं लेयके, धर्मनाथ लग जाण । केइ इगादिकने कहे, पल्पसंख्य परिमाण ॥ ३२४ ॥ सर्व तीर्थ विच्छेदनो, ग्यार पल्यना भाग । ग्यार पल्य पूरा केई, केवलि जाणे थाग ॥ ३२५ ॥ १ पावपल्य सुविधिजिनेश, इमही शीतल मान । पौनपल्य श्रेयांसजिन, पावपल्य वासु वखान ॥१॥ श्रीविमलजिन पौनपल्य, पावपल्य अनन्त । पावपल्य धर्मजिनंद, ग्यारे भाग भणन्त ॥ २ ॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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